व्यक्तित्व: मेजर रामास्वामी परमेश्वरन
सीने पर गोली खाकर भी जो डटे रहे मैदान में

भारतीय सेना ने अप्रतिम शौर्य की चमक सिर्फ देश के भीतर या सीमाओं पर ही नहीं बिखेरी, बल्कि संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन से लेकर पड़ोसी श्रीलंका तक भारत के ये वीर बलिदान गाथा के साक्षी रहे हैं। इन्हीं में से एक परमवीर हैं मेजर रामास्वामी परमेश्वरन, जिन्होंने श्रीलंका में ऑपरेशन पवन के दौरान अपने लक्ष्य को सीने पर गोली खाकर भी किया हासिल ...
जन्म: 13 सितंबर 1946 मृत्यु: 25 नवंबर 1987

बात 1980 के दशक के अंत की है। श्रीलंका सिविल वॉर से जूझ रहा था। भारत-श्रीलंका समझौते के अनुसार, भारतीय सेना वहां शांति व कानून और व्यवस्था बहाल करने के लिए गई। श्रीलंका के अंदर भारतीय सेना द्वारा चलाए गए इस अभियान को 'ऑपरेशन पवन' के नाम से जाना जाता है। यह 1987 से 1990 तक चला। इस पूरे मिशन में यूं तो हर एक भारतीय जवान ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, मगर एक नाम ऐसा भी रहा, जिसे इस मिशन के दौरान अपनी बहादुरी के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, वह कोई और नहीं मेजर रामास्वामी परमेश्वरन थे।

मेजर रामास्वामी परमेश्वरन 13 सितंबर, 1946 को महाराष्ट्र में पैदा हुए। स्कूल की पढ़ाई के बाद 1968 में साइंस से ग्रेजुएशन पूरी की और परमेश्वरन ने खुद को सेना के लिए तैयार किया। कहते हैं कि परमेश्वरन 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ने वाले सैनिकों के बलिदान से बहुत प्रेरित थे। 1971 में वह ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकेडमी (ओटीए) पहुंचने में सफल रहे। वहां से पास होने के बाद 16 जून, 1972 को वो 15 महार रेजिमेंट में कमीशंड हुए और अधिकारी बने। उन्हें जो भी जिम्मेदारी मिलती, वह उसे बखूबी निभाते। मिजोरम और त्रिपुरा में उग्रवादी घटनाओं के खिलाफ कार्रवाई के दौरान उनकी सक्रियता इसके दो बड़े उदाहरण बने। इस दौरान उन्होंने अपनी कार्यशैली से सभी को प्रभावित किया। वह अपने वरिष्ठ अफसरों के प्रिय तो बने ही, अपने जूनियर और साथियों के बीच भी लोकप्रिय हो गए। प्यार से लोग उन्हें 'पेरी साहब' कहा करते थे। भारतीय सेना की ओर से परमेश्वरन 'ऑपरेशन पवन' के तहत श्रीलंका गए और वहां शांति बहाली में जुट गए। 25 नवंबर 1987 को ऑपरेशन पवन के दौरान जब मेजर रामास्वामी परमेश्वरन श्रीलंका में एक तलाशी अभियान से लौट रहे थे, तब उनके सैन्य दल पर आतंकवादियों के समूह द्वारा घात लगाकर आक्रमण किया गया।

धैर्य और सूझ-बूझ से उन्होंने आतंकवादियों को पीछे से घेरा और उन पर हमला कर दिया जिससे आतंकी पूरी तरह से स्तब्ध रह गए। आमने-सामने की लड़ाई में एक आतंकवादी ने उनके सीने में गोली मार दी। निडर होकर मेजर परमेश्वरन ने आतंकवादी से राइफल छीन ली और उसे मौत के घाट उतार दिया। गंभीर रूप से घायल अवस्था में भी वे निरंतर आदेश देते रहे और अपनी अंतिम सांस तक अपने साथियों को प्रेरित करते रहे। उनकी इस वीरतापूर्ण कार्रवाई के परिणाम स्वरूप पांच आतंकवादी मारे गए और भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद बरामद किया गया। मेजर रामास्वामी परमेश्वरन ने असाधारण शौर्य और प्रेरक नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया, जिसके लिए उन्हें मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया। n
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