सभी हिंदी सेवी संस्थाएँ एकजुट हों – अनिल जोशी

 

“संपूर्ण भारत की सभी सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाएँ हिंदी हित में एकजुट हों और हिंदी भाषा एवं साहित्य के विकास के लिए भावी योजनाएँ बनाएँ| जरूरतमंद साहित्यकारों की आर्थिक सहायता की जाए, सभी हिंदी सेवी नवीनतम तकनीक से जुड़ें और हिंदी में विभिन्न भाषाओँ से अनूदित रचनाएँ ई-पोर्टल पर उपलब्ध करवाई जाएँ|” केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल, आगरा के उपाध्यक्ष अनिल जोशी ने दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन की राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में ये विचार व्यक्त किए| ‘हिंदी के विकास में सरकारी संस्थानों का योगदान’ विषय पर आयोजित इस राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी में देश के विभिन्न क्षेत्रों से विद्वान वक्ताओं को आमंत्रित किया गया था।

राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी के संयोजक और दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष डॉ. रवि शर्मा ‘मधुप’ ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताई|सभी उपस्थित विशिष्ट अतिथियों, मुख्य अतिथियों का स्वागत किया। ई-संगोष्ठी की अध्यक्षता दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. रामशरण गौड़ ने की। कार्यक्रम का शुभारंभ सुरम्या शर्मा द्वारा सरस्वती वंदना से हुआ|

अपने स्वागत वक्तव्य में दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन की कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती इंदिरा मोहन ने संगोष्ठी में सम्मिलित सभी मुख्य वक्ताओं, अतिथियों तथा अध्यक्ष महोदय तथा प्रतिभागी श्रोताओं का हृदय से स्वागत किया। उन्होंने कहा कि सम्मेलन विगत 76 वर्षों से हिंदी के प्रचार-प्रसार में रत है। कोरोना काल में भी विभिन्न आयोजनों के द्वारा यह संस्था अनवरत हिंदी की सेवा में लगी हुई है, उसी कड़ी में यह राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी कराई जा रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक हिंदी का राष्ट्रीय स्तर पर स्वागत नहीं होगा, प्रयोग नहीं होगा तब तक यह भाषा अपना उचित स्थान प्राप्त नहीं कर पाएगी| इसलिए हमें हिंदी के प्रति राष्ट्रीय प्रेम को जगाना होगा|

मुख्य वक्ता के रूप में दिल्ली हिंदी अकादमी, दिल्ली संस्कृत अकादमी तथा गढ़वाली-कुमाऊँनी अकादमी के सचिव डॉ. जीतराम भट्ट ने बताया कि हिंदी अकादमी के दो कार्य हिंदी के प्रचार प्रसार में प्रमुख हैं- लाल किले का कवि सम्मेलन और विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी में श्रेष्ठ कार्यों के लिए पुरस्कारों की योजना। इन योजनाओं में शलाका सम्मान सर्वप्रमुख है। भट्ट जी ने आगे कहा कि हिंदी अकादमी हिंदी-प्रचार प्रसार के लिए विभिन्न केंद्रों द्वारा अनेक कार्यक्रम चलाती है। कवियों, साहित्यकारों के साथ-साथ छात्रों को भी विभिन्न स्तरों पर प्रोत्साहित किया जाता है।

द्वितीय मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित राजस्थानी हिंदी ग्रंथ अकादमी, जयपुर के निदेशक डॉ. बजरंग लाल सैनी ने बताया कि हिंदी माध्यम से शिक्षण हेतु विभिन्न महत्त्वपूर्ण ग्रंथों, पांडुलिपियों के प्रकाशन का कार्य विगत 50 वर्षों से हो रहा है। अकादमी कम कीमत पर सभी विषयों की पुस्तकें प्रकाशित करवा कर पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास करती है। उन्होंने बताया कि उनके गत दो वर्ष के कार्यकाल के अंदर राजस्थान की विभिन्न बोलियों की पुस्तकें हिंदी भाषा में प्रकाशित की हैं और नवोदित लेखकों के लिए दो दिवसीय कार्यशाला चलाने पर विचार हुआ है।

तृतीय मुख्य वक्ता के रूप में हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला के निदेशक डॉ. चंद्र त्रिखा ने बताया कि सूचना प्रौद्योगिकी की आज अत्यंत आवश्यकता है, परंतु अभी यह तंत्र पूर्ण रूप से न परिपक्व है, न प्रामाणिक। हरियाणा साहित्य अकादमी ने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए अपना यू ट्यूब चैनल तथा ई-बुक का प्रकाशन शुरू किया है| उन्होंने कहा कि साहित्यकारों और अनुवादकों को उचित मानदेय/पारिश्रमिक अवश्य देना चाहिए, जिससे उनकी रुचि हिंदी साहित्य में बनी रहे।

मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल, आगरा के उपाध्यक्ष डॉ अनिल जोशी ने कहा कि पुरानी परंपरा में से कुछ लोग ऐसे हैं, जो अभी तक सेवा कर रहे हैं। उनमें से सम्मेलन की कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती इंदिरा मोहन जी भी हैं, जो अभी भी अपनी पूर्ण ऊर्जा के साथ सम्मेलन की सेवा में लगी हुई हैं। उन्होंने राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जी का एक उदाहरण देते हुए कहा कि मृत्यु निकट होने पर पुरुषोत्तम दास जी ने श्री गोपालप्रसाद व्यास जी का हाथ पकड़कर कहा - ''तुम्हें हिंदी का प्रचार प्रसार निरंतर करना है।''

केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा हिंदीतर क्षेत्रों में हिंदी के उत्थान के लिए विभिन्न कार्य किए जाते हैं| ‘गवेषणा’, ‘भावक’ आदि पत्रिकाओं के माध्यम से हिंदी का प्रचार-प्रसार किया जाता है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि देश के प्रसिद्ध साहित्यकारों के जन्म स्थान, व्यक्तित्व, कृतित्व को जन सामान्य तक पहुँचाने के लिए प्रकाशन आवश्यक है| सभी सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं को हिंदी की भलाई के लिए एक साथ मिलकर योजनाएँ बनानी चाहिए। वर्तमान समय की पुकार को देखते हुए कार्यक्रमों को ऑफलाइन से ऑनलाइन प्रतिष्ठित करना चाहिए और हमें नवीन प्रौद्योगिकी से दोस्ती करनी चाहिए|

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. रामशरण गौड़ ने कहा कि हिंदी को भारतीय वाङ्मय की भाषा बनाना समय की माँग है।हिंदी को अध्ययन-ध्याप्न का माध्यम बनाने से ही हिंदी का उद्धार होगा| हिंदी के तीन स्वरूप हैं -राजभाषा, संपर्क भाषा और राष्ट्रभाषा। गौड़ साहब ने बताया कि राजभाषा के लिए सरकारी प्रयासों के द्वारा अनुवादक तो उपलब्ध हो जाते हैं, परंतु संपर्क भाषा व राष्ट्रभाषा यानी साहित्य की भाषा के अनुवादक उपलब्ध नहीं होते, जिसके कारण हिंदी के पूर्ण प्रचार-प्रसार में बाधा पहुँचती है। भारतीय संस्कृति से जुड़े रहने का सशक्त माध्यम हिंदी ही है|

कार्यक्रम के अंत में हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रबंध मंत्री आचार्य अनमोल ने इस राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी में उपस्थित हुए मुख्य अतिथि, मुख्य वक्ताओं, अध्यक्ष महोदय के साथ-साथ उपस्थित प्रतिभागी श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने बताया कि आज की इस संगोष्ठी में विद्वत मंडल का उद्बोधन विषय की गहराई से जुड़ा हुआ रहा है, जिसका लाभ सभी को मिलने वाला है। यह संस्था सभी सुझावों के अनुरूप भविष्य में भी ऐसे आयोजन करने में संलग्न रहेगी। कार्यक्रम के संयोजक व संचालक डॉ. रवि शर्मा ‘मधुप’ को उन्होंने विशेष बधाई देते हुए कहा कि मधुप जी ने बड़ी ही वाक्पटुता और कुशलता के साथ इस राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी संचालन किया है।

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