चुनाव अधिकारियों की मिलीभगत से की जा रही है, चुनाव में धांधली ??

जिन अधिकारियों को निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराने की जिम्मेदारी दी गयी हो , वे ही अगर कुछ कैंडिडेट्स से मिलीभगत करके चुनाव में धांधली कराने में लग जाये तो इसे क्या कहे ?? क्या यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए बेहद खतरनाक नही है ? इन दो घटनाओं पर गौर कीजिए -

पहली घटना एचौड़ा कम्बोह न्याय पंचायत के बीडीसी वार्ड संख्या 68, एचौड़ा कम्बोह रझा से सम्बंधित है। इसके क्षेत्र में हाजीबेड़ा, एचौड़ा कम्बोह और रझा गावँ के वोटर्स शामिल है।
चुनाव अधिकारियों ने पहली गड़बड़ी हाजीबेड़ा और एचौड़ा कम्बोह की मतदाता सूचियों में से लगभग 400 वोटर्स के नाम अपने स्तर पर ही बिना वांछित कानूनी प्रक्रिया किये ही काट दिए और उन्हें वोट के अधिकार से वंचित कर दिया। जाहिर सी बात है कि मतदाताओं के नाम किसी न किसी केंडिडेट से मिलीभगत करके काटे गये बल्कि सही शब्दो मे कहा जाए तो किसी न किसी कैंडिडेट् ने अपने चुनावी लाभ के लिए कटवाये।
किसी नागरिक को उसके मताधिकार से वंचित करना आपराधिक कार्य है। पहले की सूची से वर्तमान सूची का मिलान करके (क्रॉस चेक ) आसानी से यह पता चल सकता है कि कितने वोट काटे गए ?? वोट काटने की प्रक्रिया पालन हुई या नही ? यह भी पता चल जायेगा। मेरी जानकारी में ही भीम सिंह पुत्र स्व. खड़क सिंह, भाष्कर सिंह पुत्र भीम सिंह, सुखबीर पुत्र स्व परम सिंह, जागेन्द्र पुत्र चन्द्रपाल सिंह, देवेंद्र सिंह पुत्र चन्द्रपाल सिंह, अंतिम चाहल पुत्र स्व.नरेश सिंह, नरदेव सिंह पुत्र स्व चरण सिंह, विजयपाल सिंह पुत्र महेंद्र सिंह , राम कुमार सिंह पुत्र स्व. होराम सिंह, राजेश पुत्र रामकुमार सिंह, विनीत पुत्र रावेंद्र , नागेन्द्र सिंह पुत्र कीरत सिंह आदि के वोट है, जो गैर कानूनी ढंग से चुनाव अधिकारियों ने काट दिए।
ये सभी वोटर्स गावँ में ही रहते है, वोट काटने का कोई कानूनी आधार नही है, न कोई कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया। यह सीधा सीधा भ्र्ष्टाचार का मामला प्रतीत होता है। इन वोटर्स के परिवार वालो ने प्रभाकर को बीडीसी के लिए वोट दिए है, अगर ये वोट न काटे जाते तो 09 वोट से पराजित प्रभाकर 02 वोट्स से जीत जाते। इससे अलावा एचौड़ा कम्बोह के काटे गए वोटों में से मिलते।
इसी तरह प्लानिंग करके एचौड़ा कम्बोह में भी लगभग 400 वोट कटवाये गए है। इस तरह गैर कानूनी ढंग से वोट काट कर चुनाव प्रभावित करना चुनाव अधिकारियों की मिलीभगत का ही परिणाम है। यह सेवा भ्रष्टाचार का संकेत भी देती है। सब जानते है कि गैर कानूनी काम कोई अधिकारी जन सेवा में नही करते है। ऐसे मामलों का आधार प्रायः भ्रष्टाचार ही होता है।
एचौड़ा कम्बोह ग्राम पंचायत की मतदाता सूचियों से गैर कानूनी ढंग से वोट काटने और चुनावी घोटाले की गहन जांच उच्च अधिकारियों को करानी चाहिए।
दूसरी घटना न्याय पँचायत के बीडीसी क्षेत्र संख्या 69 सेबड़ा, तुरतीपुर मिलक इनायत पुर से सम्बंधित है। यहाँ संतोष देवी पत्नी प्रभाकर सिंह और बबली पत्नी सुनील कुमार चुनाव में बीडीसी प्रत्याशी थी, मतों की गिनती के बाद संतोष देवी को 125 वोटों से विजयी घोषित किया गया। लेकिन एआरओ ने पराजित केंडिडेट बबली के नाम से सर्टिफ़िकेट बना दिया। जब इसकी सूचना मतगणना केंद्र के बाहर गयी तो बवाल होना ही था। फिर वह सर्टिफिकेट कैंसिल किया और विजयी केंडिडेट संतोष पत्नी प्रभाकर को दिया गया।
उपचुनाव अधिकारी जयवीर सिंह, चुनाव अधिकारी पंकज बताये गये है। उपरोक्त अनियमितताओ के मामले में इन अधिकारियों की भूमिका औऱ पूर्व प्रमुख सत्यपाल सिंह से इन अधिकारियों के संबंधों की भी जांच की जानी चाहिए। मतदाता सूचियों में गड़बड़ी और गलत सर्टिफिकेट के मामले में पूर्व प्रमुख संलिप्त थे। प्रभाकर ने बताया कि अगर मतदाता सूची में गड़बड़ी न की जाती तो उनकी 200 से ज्यादा वोटों से जीत तय थी।
प्रभाकर का कहना है कि जिनके नाम काटे गये है, वे सभी मेरे समर्थक वोटर्स थे। जानबूझकर उनके नाम अधिकारियों की मिलीभगत से कटवाये गए है।
उनका कहना है कि चुनाव आयोग और सम्बंधित उच्च अधिकारियों से इस घटना की शिकायत की जायेगी और जांच कराकर दोषी अधिकारियों को दण्डित कराया जायेगा।
टिप्पणियाँ