रंग , उमंग और 'काम' का संगम : बसंत पंचमी

 बसंत पंचमी विशेष:

ज्ञान , शौर्य,और आराधना के साथ

रंग , उमंग और काम का संगम : बसंत पंचमी

बसंत का मतलब क्या है ? कब आता है बसंत ? क्या बसंत महज़ एक मौसम है ? शायद नहीं क्योंकि बसंत भौतिक कम मानसिक ज्यादा है । आध्यात्म तक जाता है बसंत । बसंत मन की स्थिति है , प्रकृति का श्रंगार है और काम भाव का उद्दीपक होने के साथ ही ज्ञान और शौर्य का संगम भी है ।

भौतिक रूप से कहें तो जब कलियां ,पल्लव ,पुष्प ,कोंपल तथा पत्ते तक खिल उठें ,मौसम खुशगवार हो जाए , न गर्मी सताए और न ही सर्दी का प्रकोप रहे तो समझिए कि बसंत आ गया है । और जब हृदय में काम भाव हिलोरें मारने लगे , प्रीतम और प्रीतिमा मिलन हेतु उद्वेलित और व्यग्र होने लगें तो भी समझिए यह बसंत के आने का संकेत है । बसंत हृदयमें काम भाव भर कर पशु - पक्षी तक में रमण का चाव जगाकर एक प्रकार से सृष्टि रचना को गति देता है , प्रकृति सुंदर से सुंदरतम हो जाती है । बसंत पंचमी का दिन वसंत के आने का संदेश लाता है । कामभाव लिए सुंदर स्त्रियाँ पीले- वस्त्र पहन, बसंत पंचमी के दिन सौन्दर्य को और भी अधिक सुंदर बना देती हैं।

मिथकों व ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार बसंत पंचमी के दिन सरस्वती देवी का अविर्भाव हुआ था । कहा यह भी जाता है कि सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य की रचना की थी । अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं हुए,उन्हें लगा कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों और मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्तिप्रकट हुई । वह एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री थी जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी।

ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी , तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। यह विद्यार्थियों का भी दिन है, इस दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती की पूजा आराधना विशेष रूप से की जाती है।

भारतीय परंपरा :

भारतीय परंपरा में बसंत का आरंभ बसंत पंचमी से होता है। इसी दिन 'श्री' अर्थात विद्या की अधिष्ठात्री देवी महासरस्वती का जन्मदिन मनाया जाता है। सरस्वती ने अपने चातुर्य से देवों को राक्षसराज कुंभकर्ण से कैसे बचाया, इसकी एक मनोरम कथा वाल्मिकी रामायण के उत्तरकांड में आती है। कहते हैं देवी वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हजार वर्षों तक गोवर्ण में घोर तपस्या की।

जब ब्रह्मा वर देने को तैयार हुए तो देवों ने कहा कि यह राक्षस पहले से ही है, वर पाने के बाद तो और भी उन्मत्त हो जाएगा तब ब्रह्मा ने सरस्वती का स्मरण किया। सरस्वती राक्षस की जीभ पर सवार हुईं। सरस्वती के प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से कहा- स्वप्न वर्षाव्यनेकानि देव देव ममाप्सिनम। यानी मैं कई वर्षों तक सोता रहूँ, यही मेरी इच्छा है। बसंत पंचमी का दिन सरस्वती जी की साधना को ही अर्पित है। शास्त्रों में भगवती सरस्वती की आराधना व्यक्तिगत रूप में करने का विधान है, किंतु आजकल सार्वजनिक पूजा- पाण्डालों में देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर पूजा करने का प्रचलन चल निकला है। माना जाता है कि इसी दिन काम के देवता अनंग का भी आविर्भाव हुआ था। यानी कि इस दिन सम्पूर्ण प्रकृति में एक मादक उल्लास व आनन्द की सृष्टि हुई थी। वह मादक उल्लास व आनन्द की अनुभूति अब भी ज्यों की त्यों है, और बसंत पंचमी के दिन यह फूट पड़ती है।


मिथक और बसंत:

ब्राह्मण-ग्रंथों के अनुसार सरस्वती ब्रह्मस्वरूपा, कामधेनु तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा आराधना के लिए माघमास की पंचमी तिथि निर्धारित की गयी है। बसंत पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है। अतः वागीश्वरी जयंती व श्रीपंचमी नाम से भी यह तिथि प्रसिद्ध है। ऋग्वेद में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन है। माँ सरस्वती विद्या व ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं। कहते हैं। जिनकी जिव्हा पर सरस्वती देवी का वास होता है, वे अत्यंत ही विद्वान व कुशाग्र बुद्धि होते हैं। बहुत लोग अपना ईष्ट माँ सरस्वती को मानकर उनकी पूजा-आराधना करते हैं। जिन पर सरस्वती की कृपा होती है, वे ज्ञानी और विद्या के धनी होते हैं। इस पर का का आरम्भ और समापन सरस्वती वन्दना से होता है। मां सरस्वती की वंदना की जाती है जिसके भाव होते हैं-‘‘असतो मा सद्गमय , तमसो मा ज्योतिर्गमय  ।

पूजा विधान :

आज के दिन पूजा कक्ष को खास तौर पर स्वच्छ करें ,, सरस्वती देवी की प्रतिमा को पीले फूलों से सजाएं मंडप को भी पीत पुष्पों सेसुसज्जित करें , एवं पीले परिधान पहनायें। इसी प्रतिमा के निकट गणेश का चित्र या प्रतिमा भी स्थापित करें , परिवार के सभी सदस्य पीले वस्त्र धारण कर तथा पूजा में सम्मिलित होंवें। बच्चे वयस्क देवी को प्रणाम कर। बेर व सांगरी प्रसाद में मुख्यरूप से खाएं , इन्हीं के साथ पीली बर्फी या बेसन लड्डू भी रखे जाएं। प्रसाद की थाली में नारियल व तांबूलपत्र भी रखें। मान्यता है कि एैसा करने से ज्ञान की देवी सरस्वती कृपाा करती हैं । अगर आप मंदिर जा रहे हैं, तो पहले ‘‘ऊं गं गणपतये नम: ’’मन्त्र का जाप करें।

उसके बाद माता सरस्वती के मन्त्र- ‘‘ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नम: ’’ का जाप करके आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। इस मन्त्र के जाप से जन्मकुण्डली के लग्न (प्रथम भाव), पंचम (विद्या) और नवम (भाग्य) भाव के दोष भी समाप्त हो जाते हैं। इन तीनों भावों (त्रिकोण) पर श्री महाकाली, श्री महासरस्वती और श्री महालक्ष्मी का अधिपत्य माना जाता है। मां सरस्वती की कृपा से ही विद्या, बुद्धि, वाणी और ज्ञान की प्राप्ति होती है। देवी कृपा से ही कवि कालिदास ने यश और ख्याति अर्जित की थी। वाल्मीकि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, शौनक और व्यास जैसे महान ऋषि देवी-साधना से ही कृतार्थ हुए थे ।

रति-काम महोत्सव:

विद्वानों का मानना है कि सूर्य के कुंभ राशि में प्रवेश के साथ ही रति-काम महोत्सव आरंभ हो जाता है। यह वही अवधि है, जिसमें पेड़-पौधे तक अपनी पुरानी पत्तियों को त्यागकर नई कोपलों से आच्छादित दिखाई देते हैं। समूचा वातावरण पुष्पों की सुगंध और भौंरों की गूंज से भरा होता है। मधुमक्खियों की टोली पराग से शहद लेती दिखाई देती है, इसलिए इस माह को मधुमास भी कहा जाता है।

प्रकृति काममय हो जाती है। बसंत के इस मौसम पर ग्रहों में सर्वाधिक विद्वान ‘शुक्र’ का प्रभाव रहता है। शुक्र भी काम और सौंदर्य के कारक हैं, इसलिए रति-काम महोत्सव की यह अवधि कामो-द्दीपक होती है। अधिकतर महिलाएं इन्हीं दिनों गर्भधारण करती हैं।

जन्मकुण्डली का पंचम भाव-विद्या का नैसर्गिक भाव है। इसी भाव की ग्रह-स्थितियों पर व्यक्ति का अध्ययन निर्भर करता है। यह भाव दूषित या पापाक्रांत हो, तो व्यक्ति की शिक्षा अधूरी रह जाती है।

शौर्यपर्व वसंत पंचमी

वीर हकीकत राय प्रकरण :

वसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से गहरा संबंध है। एक दिन जब मुल्ला जी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गये, तो सब बच्चे खेलने लगे, पर वह पढ़ता रहा। जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा, तो दुर्गा मां की सौगंध दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ाई। हकीकत ने कहा कि यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा ? बस फिर क्या था, मुल्ला  जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची। मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। आदेश हो गया कि या तो हकीकत मुसलमान बन जाये, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा। हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया। परिणामतः उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया। कहते हैं

उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी। वीर हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी, पर उस वीर का शीश धरती पर नहीं गिरा। वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया। यह घटना वसंत पंचमी (23.2.1734) को ही हुई थी।

किस्सा गुरू रामसिंह कूका का :

वसंत पंचमी हमें गुरू रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है। उनका जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। कुछ समय वे रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिकमना होने के कारण इनका एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया। गुरू रामसिंह गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उद्धार, अंतर्जातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलाई । प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था। 1872 में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंह में गौमांस ठूंस दिया। यह सुनकर गुरू रामसिंह के शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68 पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिन फांसी दी गयी। दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। यह पर्व हमें उन वीरों का स्मरण कराता है, जिन्होंने देश और धर्म के लिए बसंती चोला पहन अपने प्राणों की बलि दे दी।

भारतीय सिनेजगत ने भी समय समय पर बसंत को गीतों में गूंथ कर परोसा है उसे मस्ती का पर्व बनाया है " रंग बसंती आ गया, मस्ताना मौसम छा गया जैसे गीत इसका प्रमाण है । लोक गीत और साहित्य भी बसंत को अपने तरीके से वर्णित करते रहे हैं जायसी जैसे कवि तो पद्मावत में पद्मावती के वियोग में भी बसंत को ले आते हैं देखिए कर वें बसंत को सीधे मन से जोड़ देते हैं ।

अस्तु , बसंत तो बसंत है तन ,मन, जीवन को रंग- उमंग देने का मौसम और इस मौसम के आगाज़ का नाम है बसंत पंचमी ।

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