वरिष्ठ साहित्यकार एवं भारत के शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल "निशंक" के कथा-साहित्य पर साहित्य परिषद् ने आयोजित की चर्चा
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् न्यास की लद्दाख प्रांत की इकाई द्वारा संवाद-संदर्भ श्रृंखला के अंतर्गत अंतर्जालिक पटल पर चर्चा करवाई गई। 

06 दिसंबर, 2020 को आयोजित इस चर्चा का विषय वरिष्ठ साहित्यकार और वर्तमान में भारत के शिक्षामंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के कथा-साहित्य पर केंद्रित रहा।


 

 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संपन्न हुई इस चर्चा में वारसा विश्वविद्यालय (पोलैंड)की आईसीसीआर हिंदी पीठ के अध्यक्ष प्रो. सुधांशु कुमार शुक्ल मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। 

उनके साथ ही वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार बी.एल गौड़ और कवि बेचैन कंडियाल ने भी डॉ."निशंक" के कथा साहित्य पर अपने अपने विचार और वक्तव्य दिए।


डॉ. निशंक की रचनाधर्मिता (कथा-साहित्य पर एकाग्र) विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार बी. एल. गौड़ ने डॉ. निशंक की विभिन्न कहानियों के संदर्भ के साथ स्पष्ट किया, कि उनकी कहानियों में आम आदमी की त्रासदी की पीड़ा दिखाई देती है। त्रासदी की स्थितियाँ पाठकों के मन को उद्वेलित करती हैं, और लंबे समय तक मन में ताजी रहती हैं। श्री गौड़ ने कहा कि डॉ. निशंक की कहानियों में सामयिक संदर्भों की यथातथ्य प्रस्तुति देखने को मिलती है। केदारनाथ की त्रासदी पर केंद्रित उनकी कहानी पाठकों द्वारा बहुत सराही गई थी।

 

संवाद-संदर्भ में अपना व्याख्यान देते हुए वारसा विश्वविद्यालय, पौलेंड से जुड़े प्रो. सुधांशु शुक्ल ने डॉ. निशंक की कहानियों की सकारात्मकता, साधारणीकरण और तादात्मीकरण का विशेष उल्लेख किया। प्रो. शुक्ल ने कहा कि कथाकार की संवेदनशीलता और समाज को देखने की निरपेक्ष दृष्टि, साहित्य को विशिष्ट बनाती है। यह विशिष्टता कथाकार को समाज-सापेक्ष और समकालीन बनाती है। 

इस दृष्टि से डॉ.  निशंक की कहानियाँ साहित्य जगत में अपना विशेष स्थान रखती हैं।

 प्रो.शुक्ल ने कहा, कि डॉ. निशंक की कहानियों में उत्तराखंड के जनजीवन की झलक दिखती है।

 

डॉ. निशंक के जनसंपर्क अधिकारी और ख्यातिलब्ध ग़ज़लकार डॉ. बेचैन कंडियाल ने डॉ. निशंक के साहित्यिक परिवेश पर अपनी बात कही। डॉ. बेचैन ने अपने उद्बोधन में डॉ. निशंक के संघर्षपूर्ण जीवन के अनेक पक्षों-पहलुओं और घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा, कि उनकी कहानियों में उनका वह परिवेश झलकता है, जिसके बीच उन्होंने स्वयं संघर्ष किया है। उन्होंने कहा कि डॉ. निशंक की कहानियों के पात्र नकारात्मकता के स्थान पर ऊर्जा और सकारात्मकता से भरे दिखाई देते हैं। सामान्य मानव के निकट होने के कारण उनकी कहानियाँ विशेष महत्व की हैं।

संवाद-संदर्भ के इस आयोजन का संचालन अखिल भारतीय साहित्य परिषद् लद्दाख प्रांत के महामंत्री और केंद्रीय बौद्ध विद्या संस्थान लेह के प्राध्यापक डॉ. राहुल मिश्र ने किया। 

 

डॉ. मिश्र ने कहा कि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. निशंक की पहचान एक कवि के रूप में प्रमुख रूप से है, लेकिन उनका कथा-साहित्य भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। उनकी कहानियों और उपन्यासों में भारतीय जीवन की झलक दिखाई देती है। राजनीति के साथ साहित्य का मेल समाज के लिए अत्यंत लाभकारी होता है, क्योंकि एक साहित्यकार की सहृदयता समाज के प्रति नैतिक दायित्वों का संवर्धन करती है।

 

संवाद-संदर्भ का सजीव प्रसारण विभिन्न अंतर्जालिक पटलों पर हुआ, जिससे जुड़कर देश-विदेश के अनेक दर्शकों-श्रोताओं ने चर्चा में सहभागिता निभाई।

 

रिपोर्ट-डॉ.विवेक गौतम

साहित्यकार एवं शिक्षाविद्,नयी दिल्ली

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