बुजुर्गों की सेवा का अवसर हम खो रहे हैं!

संस्कृत में एक श्लोक हैं - 


अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोंसेविन: ! चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम!!अर्थात जो बुजुर्ग वृद्धजनों विनम्र और नित्य अनुभवी लोगों की सेवा करते हैं उनकी चार चीजें हमेशा बढ़ती रहती हैं -आयु विद्या यश और बल ! अफसोस इस बात का है कि यह चारों चीजें सभी को चाहिए लेकिन वृद्ध जनों बुजुर्गों अनुभवी सम्मानित लोगों की सेवा कोई नहीं करना चाहता है ! सबसे बड़ी दुख की बात है कि हमारा घर परिवार और स्कूल भी यह बताना उचित नहीं समझ रहा ! बस एक दूसरे से आगे बढ़ जाने की होड़ मची है, चारों तरफ पश्चात संस्कृतियों और अंग्रेजी का बोलबाला है ! आज किसी को फुर्सत ही नहीं है कि लोग नाना-नानी, दादा - दादी के पास बैठे उनकी कहानियाँ सुने , उनकी सेवा करें और उनका आर्शीवाद तथा अनुभव प्राप्त करें ! आज भारत में बुजुर्गों की संख्या दिनों दिन बढ़ती चली जा रही है ! एक अनुमान के अनुसार 2026 में केवल भारत में बुजुर्गों की संख्या 17.9 करोड़ हो जाएगी ! अब सवाल यह उठता है कि इन बुजुर्गों के लिए हम आप क्या सोचते हैं, क्या करते हैं ! असल में हकीकत यह है कि हम एक मां - बाप का लालन-पालन उस तरीके से नहीं कर पाते हैं जिस प्रकार से वह हमारा लालन-पालन एक बच्चे की तरह से किए थे ! यहां पर हमारा यह फर्ज बनता है कि हम भी उनका लालन-पालन माता पिता की तरह करें और माता-पिता का दर्जा तो फिर भगवान से भी ऊंचा होता है ! आज हम बिल्कुल उल्टा देखते हैं ! एक मां-बाप कई बच्चों का लालन-पालन तो कर लेते हैं लेकिन एक मां- बाप का लालन-पालन कई बच्चे नहीं कर पाते हैं ! कारणों पर जाएं तो बहुत से कारण सामने आएंगे लेकिन सारी चीजों को ताक पर रखकर हमें यह सोचना है कि यह हमारे मां-बाप है और यह हमें फिर दोबारा नहीं मिलेंगे !यही हमारे देवता हैं हम इन्हें जितना हो सके खुश रखें क्योंकि इनकी दुवाएं चट्टानों की तरह होती हैं और हमारे बुरे समय में यही दुवाएं हमारी ढाल बन जाती हैं ! हर मां-बाप को जीते जी खुश प्रसन्न रखें ! फिर मरने के बाद उन्हें जो भी दे दें तो खुश रहेंगे तृप्त रहेंगे ! आजकल इनको वरिष्ठ नागरिक की संज्ञा दी जाती है लेकिन शहर गांव तक इनके प्रति अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं कभी-कभी तो ऐसी खबरें सामने आती रहती हैं कि एका-एक कोई विश्वास नहीं करेगा जैसे जायदाद, रूपये- पैसे के लिए पुत्र ने मां-बाप या फिर दोनों को मार डाला! ऐसी खबरें एक दो दिन पर या फिर आए दिन अखबारों में छपी मिलती है! अब सवाल यह उठता है कि क्या इसी दिन रात के लिए मां-बाप हमें पालते हैं ! बुजुर्गों के प्रति सम्मान में कोई एक दो संगठन लोग प्रयास करते हैं लेकिन मां - बाप की तिरस्कार की बात तो पूछिए मत जैसे मालुम पड़ता है कि यह शौक चल निकला है! इनके प्रति अपराध दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं जो दुख का विषय है ! जिनसे समाज को अनुभव प्यार दुआ लेनी चाहिए उन्हीं का गला दबा देना यह कितनी संकट का सूचक है ! सरकार और शासन प्रशासन भी गैर जिम्मेदार है इस मामले में!
सरकार सरकारी पेंशन और सुविधाओं का लाभ देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती हैं लेकिन कभी यह सोचने का प्रयास नहीं करती है कि जो पेंशन वह बुजुर्गों को देती है वह पर्याप्त है कि नहीं ! हकीकत यह है कि सरकार जो पेंशन देती है बुजुर्गों को वह ऊंट के मुंह में जीरा का काम करती है ! इस अवस्था इनको सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है तो उचित देखभाल और चिकित्सा की ! अगर सरकार दे सकतीं है तो इन्हें निशुल्क चिकित्सा के साथ साथ इनकी सुरक्षा की गारंटी दें और जीवन यापन के पर्याप्त पेंशन साथ ही जो बेटे - बेटियां अपने मां - बाप का उचित देखभाल नहीं कर पाते हैं नहीं कर रहे हैं उनके लिए कड़ी से कड़ी सजा का प्रवधान हो ! साथ ही साथ हमारे पाठ्यक्रमों भी इनकी सेवा की उपयोगिता के विषय में शिक्षा दी जाय, घर के माता - पिता इनकी सेवा के लिए बच्चों को अच्छें से पढ़ाएं सिखाएं बताएं ! बुजुर्गों की सेवा या देखभाल किसी एक की जिम्मेदारी नहीं है यह हम सब की जिम्मेदारी है कि हम सब इनकी उचित देखभाल करें ! क्योंकि आज ये इस अवस्था में है कल हम होगें और फिर जो हम आज बोएंगें वही कल काटेगे !
कुछ बुजुर्ग ऐसे भी होतें है जो कुछ करने का जज्बा रखते हैं उनके लिए भी सरकार समाज कुछ करें जिससे वे जीवन यापन के साथ साथ अपने समय का सही उचित ढंग से सदुपयोग कर सकें ! ऐसे वृद्ध जनों को उनके अनुभव और इच्छा के अनुसार उपयुक्त रोजगार नौकरी पेशा में लगाएं जिससे उनकी दिनचर्या और आय बढ़ने के साथ-साथ भारत की उन्नति भी हो ! आने वाले समय में दिन-प्रति दिन इनकी बढ़ती संख्या चुनौती साबित होगी ! सरकार अगर कोई ठोस कदम नहीं उठाई तो हालत बदतर हो सकतें है जो हमारे विश्व गुरु होने पर सवाल खड़े करने के साथ साथ भारतीय संस्कृति और संस्कार को नष्ट करने के लिए याद करेगें! एक बार स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि - जिस व्यक्ति ने अपने माता पिता को वृद्धाश्रम में भेज दिया है उसे तो जीवन भर का सूतक लग गया है वह मंदिर जाने लायक और शुभ कार्य करने लायक ही नहीं है ! 



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