![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjDbvF5HzAIe8Vcxfv93LeH27Cv68w13X70WXg3x29iNru3dF2LHl_jxt2C0FGRqZoG01NZ_a8FAc5uGmCWM_hGK5VoyWaOMQ5L0e0wgum4vrgeHcUI_t1J0QAIhQodeetCmTxMOGHbkZ45VeHS9IxWdBd_WzkdffDhyphenhyphennNId1wiuEAT6-d91NK1f1TP6c/s320/Yoga%20Day.jpeg)
![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjDbvF5HzAIe8Vcxfv93LeH27Cv68w13X70WXg3x29iNru3dF2LHl_jxt2C0FGRqZoG01NZ_a8FAc5uGmCWM_hGK5VoyWaOMQ5L0e0wgum4vrgeHcUI_t1J0QAIhQodeetCmTxMOGHbkZ45VeHS9IxWdBd_WzkdffDhyphenhyphennNId1wiuEAT6-d91NK1f1TP6c/s320/Yoga%20Day.jpeg)
पिछले हफ्ते देश में नयी शिक्षा नीति की घोषणा कर दी गयी है। काफी कोशिश करने पर भी पूरा डॉक्यूमेंट नहीं मिल पा रहा था। शुरुवात में तो ये मिनिस्ट्री की वेबसाइट पर भी उपलब्ध नहीं था, फिर अंततः ये वेबसाइट पर डाला गया। अब मन मस्तिष्क में ये प्रश्न उठता है ये कैसी पालिसी है, इसमें क्या गलत है और क्या सही है। सबसे पहली बात तो ये है की कि ये पॉलिसी है क्या? क्या आवश्यकता है जिसके लिए किसी देश में एजुकेशन पॉलिसी बनाई जाती है ? ये कोई लीगल डॉक्यूमेंट नहीं है। न ही ये कोई रेगुलेशन या रूल्स है, इसलिए इस पॉलिसी में जो लिखा है उसे कल ही कोई लागू नहीं करने वाला है। ये एक फ्रेम वर्क भर है । कुछ फंडामेंटल बातें हैं, जो बताई गयीं हैं, जिन पर भविष्य में सरकारों द्वारा कानून बनाये जाने चाहिए। ये डॉक्यूमेंट देश में हर पंद्रह-बीस साल बाद बनाया जाता है । पहली बार ऐसा डॉक्यूमेंट नेशनल एजुकेशन कमिशन जिसने १९६४ से १९६६ तक काम किया था, उसने बनाया था। इसी कमीशन ने भारत की पहली एजुकेशन पालिसी १९६८ में प्रस्तुत की थी। उस कमीशन की अध्यक्षता मशहूर शिक्षाविद दौलत सिंह कोठारी, जो की उस समय के युजीसी के अध्ध्यक्ष भी थे, उन्होंने की थी, और इसी वजह से इसे कोठारी कमीशन भी कहते हैं। इस एजुकेशन पॉलिसी, जिसने ओवरऑल फ्रेम दिया कि देश में शिक्षा के उद्देश्य क्या होने चाहिए प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक और सेकेंडरी शिक्षा कैसी होनी चाहिए। कॉलेज और यूनिवर्सिटी में शिक्षा का प्रतिपादन कैसा होना चाहिए, कुल मिलकर छोटे-छोटे भागों में नहीं सभी टुकड़ों को जोड़ते हुए पूरे देश के शैक्षणिक ढाँचे की एक समग्र तस्वीर बनाना, यही काम होता है एजुकेशन पॉलिसी का। उसके बाद लगभग २० साल बाद नई कमिटी ने उस पॉलिसी को रिवाइज किया था और नई पॉलिसी बनाई गयी थी। इस नए रिवाइज्ड पालिसी को तब न्यू एजुकेशन पॉलिसी बोला गया उस समय राजीव गांधी की सरकार थी। फिर दोबारा १९९२ में उसको थोड़ा और रिवाइज किया गया था । १९९२ के बाद अब ये पॉलिसी, न्यू एजुकेशन पालिसी-२०२० आई है, जबसे २०१४ में एनडीए की सरकार आई है तभी से इसकी कोशिश शुरू की गयी थी, पहले जब स्मृति ईरानी जी मंत्री थी उन्होंने एक समिति बनाई थी जिसकी अध्यक्षता टी एस आर सुब्रमण्यम जी के की थी, उस समिति ने जून, २०१६ में अपनी रिपोर्ट दी थी लेकिन शायद सरकार को पसंद नहीं आयी। उसमें बात नहीं बनी तो उसके बाद एक दूसरी कमेटी बनाई गयी थी जून, २०१७ में, इसरो के पूर्व प्रमुख के कस्तूरीरंगन जी की अध्यक्षता में, उसने पिछले साल (२०१९) जून में अपनी रिपोर्ट सम्मिलित की थी । २०१९ में रिपोर्ट पर चर्चा हुई और उसके बाद अब सरकार इस रिपोर्ट के आधार न्यु एजुकेशन पालिसी जारी की गयी है। ये कोई चार सौ अस्सी पेज की रिपोर्ट थी । इसी लम्बी रिपोर्ट का सार जो ६० पेजों की एक समरी बनाई गयी है, उसे ही सरकार ने कल नई एजुकेशन पॉलिसी की तरह रिलीज किया है। अब ये जो ६० पेजों का दस्तावेज है उसे ध्यान से पढ़ने पर हमें पता चलता है की न्यू एजुकेशन पॉलिसी में क्या है, और क्या अच्छा है, और क्या-क्या और अच्छा हो सकता था। किसी भी पॉलिसी का मूल्यांकन करते समय और किसी भी विषय पर अपना मत बनाते वक़्त हमें केवल और केवल उस विषय पर ध्यान नहीं देना चाहिए, जैसे इस परिपेक्ष्य में हमारे देश की शिक्षा नीति इसके केंद्र में है। इस बात से कि ये किस सरकार के द्वारा पेश किया गया है, और हमें इसके पक्ष में रहना चाहिए या विपक्ष में, इसका कोई फर्क नहीं पड़ता है। बल्कि उस विषय पर फोकस रहकर एक पेशेवर रवैय्या अपनाना चाहिए जिससे हम सही और गलत का फैसला ईमानदारी से कर सकें। हमारे देश में ये फैशन बन गया है की, विपक्ष का मतलब केवल विरोध है। लोगों को ये बोलते हुए देखा जा सकता है की,अच्छा मोदी सरकार ने इस पालिसी को लाया है तो इसका विरोध करना ज़रूरी है, पसंद की सरकार ने बताया तो समर्थन करने से हमारे देश विकास हो जायेगा। हमें हमेशा, वस्तुपरक तरीके से किसी भी पालिसी का अध्यन करना पड़ता है, तभी हम सही निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं। हम संक्षिप्त में यहाँ देखेंगे, की न्यू एजुकेशन पालिसी में क्या है, क्या अच्छा है और क्या बुरा है। जैसा ऊपर बताया गया है की ये पालिसी बस एक एजुकेशन फ्रेम है । इसके आधार पे जब कानून बनेगा और लागू होगा, रेगुलेशन और रूल्स बदले जायेंगे और जब नया बजट आएगा और पैसा भी मिलेगा इन रूल्स/रेगुलेशन को लागू करने के लिए, तभी से इसके आधार पे कोई निष्कर्ष निकला जाना चाहिए। दुर्भाग्यवश इस देश का पुराना इतिहास ये रहा है कि एजुकेशन पॉलिसी आती तो है लेकिन उसके बाद सरकार अपने मनमाने तरीके से उसके जो हिस्से लागू करना चाहती है कर देती है जिसको लागू नहीं करना चाहती उसे नहीं करती है। क्योंकि एजुकेशन पॉलिसी का कोई लीगल स्टेटस नहीं है। सरकारें चाहे तो अगले १० साल तक इस डॉक्यूमेंट को ठन्डे बास्ते में डाल के रख सकती है, कुल मिलकर सर्कार इसके सभी बिंदुओं को लागू करने के लिए बाध्य नहीं है। ये कोई कानून या रेगुलेशन नहीं है और न ही इसे नोटिफाई किया जाता है। ये एक प्रपोजल या बजट की तरह होता है। जब भाजपा जैसी राजनैतिक पार्टी द्वारा संचालित सरकार ऐसा कोई शैक्षणिक डॉक्यूमेंट लाती है तो लोगों के मन में कुछ संशय हो सकते हैं :
नयी एजुकेशन पालिसी को लेकर होने वाले आशंकाएं और उनका निवारण:
क्या ये भगवाकरण करने का प्रयत्न तो नहीं, मतलब पूरी शिक्षा का फ्लेवर हिंदुत्व-वादी तो नहीं कर देंगे? या कहीं ये बहुत अवैज्ञानिक बातें जैसे अन्धविश्वास इत्यादि को बढ़ावा देने वाली चीज़ें पाठ्यक्रम में तो कहीं घुसा देंगे ? लेकिन न्यू एजुकेशन पालिसी-२०२० के डॉक्यूमेंट को पढ़कर ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता है। इसमें कुछ छोटी बातों जैसे, सेकुलरिज्म और सोशलिज्म शब्द के इस्तेमाल से गुरेज़ किया है, और डॉक्यूमेंट लिखने वालों इनके प्रयोग से बचने की कोशिश की है। बीच-बीच में कई स्थानों पर, भारतीय संस्कृति और परम्पराओं की बहुत बार बात की गयी है, जो की अच्छी बात है। दूसरा संशय लोगों के मन में था की कहीं राज्यों की भूमिका है को कम न किया गया हो, एक और संशय यह हो सकता है, की इसमें शिक्षा का सम्पूर्ण प्राइवेटाईज़ेशन और कमर्शिलाइजीशान न कर दिया गया हो। ये सब चीजें ज्यादा हो जाएगी उसका बहुत लोगों को डर था लेकिन इस पॉलिसी में कहा गया कि और भी ज्यादा पैसा सरकार को खर्च करना चाहिए, ये एक स्वागत योग्य बात है। सरकारी अनुदानों के बिना स्कूल नहीं चल सकते हैं। इन सब बातों को स्वीकार किया गया है जो बहुत अच्छी बात है । तीसरा जो संशय हो सकता था वो ये है कि शिक्षा का स्कोप बहुत संकीर्ण कर दिया जायेगा और ये सिर्फ तकनीतकी शिक्षा तक सीमित रह जायेगा, माने हर किसी को इंजीनियर बनाओ और नौकरी लो, और शिक्षा का जो क्रिटिकल थिंकिंग और लिबरल प्रारूप है वो कहीं दफ़न कर दिया जायेगा। शिक्षा का मूल उद्देश्य ही छात्रों को एक बेहतर इंसान बनाना होना चाहिए, वो सब हटा दिया जाएगा । ध्यान से पढ़ने पर इस डॉक्यूमेंट में तो वैसा कुछ नहीं दीखता है । अब ये बात अलग है कि डॉक्यूमेंट में न बोला जाये पर जो कानून बनाया जाये वहां वैसा ही किया जाये जैसी लोगों को शंका थी। ये अच्छी बात है कि यह डॉक्यूमेंट इससे पहले जितने भी डॉक्यूमेंट आए थे, चाहे वो यूपीए की सरकार में, या कांग्रेस के जमाने में या जनता पार्टी की सर्कार के टाइम में उन सब में दी गयी बातों को आधार बना कर ही नई पालिसी का निर्माण करता करता दिखता है। और सही मायने में ऐसा ही होना चाहिए। अब आतें हैं इस डॉक्यूमेंट की मुख्य बातों पर।
न्यू एजुकेशन पालिसी-२०२० के मुख्य बिंदु:
इस पालिसी को सम्पूर्ण रूप से लागू करने पर कुछ ऐसा हो सकता है, जिससे थोड़ा बहुत नुकसान पहुँच सकता है, पहला खतरा ये है कि RTE एक्ट को इसमें थोड़ा डायलुट किया जा रहा है, क्योंकि इस पालिसी में जो सुझाव हैं उससे लगता है कि 2009 में RTE के लिए जो स्टैंडर्ड सेट किये गए थे जैसे कि हर स्कूल में कम से कम इतना स्पेस होना चाहिए क्लासरूम ऐसे होने चाहिए, ये सुविधाएं होनी चाहिए इत्यादि, इसको डायलुट किया जायेगा। इस नीति में कहीं कहीं पर थोड़ा विरोधाभास ये दिखता है, कि एक तरफ इंस्टिट्यूशन और ऑटोनॉमी की वकालत होती है, जबकी दूसरी तरफ अभी जो व्यवस्था लागू है, उसमे यूनिवर्सिटी के अंदर आप सेमिनार भी करेंगे या नहीं उसके लिए वाइसचांसलर से परमीशन लेनी होती है। एक तरफ साइंटिफिक टेम्पर की वकालत की जाती है और दूसरी ओर देश की सरकार के मंत्री ऐसे भाषण देते हैं जिनमे अन्धविश्वास और कपोल-कल्पित बातों को प्रोत्साहन दिया जाता है। ओवरआल इस नयी शिक्षा नीति के शब्द तो बहुत अच्छे हैं, बशर्ते इसे वास्तव में लागू किया जाए । अगर इसकी भावना को सरकार अपने मन के अंदर ले के आए और इसके आधार पर सम्पूर्ण शैक्षणिक ढाँचे का मूल-चूल परिवर्तन की नीयत के साथ काम करे। सिर्फ शब्दों से काम नहीं चलेगा, इसको लागु करने के काम पर ध्यान दिया जाना चाहिए, हम देखेंगे, RTE एक्ट में संशोधन होता है कि नहीं, हम ये भी देखेंगे कि ३ वर्ष से लेकर १८ वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान जोड़ा जाता है कि नहीं, शिक्षा के लिए अनुदान को बढ़ाया जाता है कि नहीं । हमें ये भी देखना होगा की अंत में नियमों में बदलाव करने के बाद सरकार इस बजट को खर्च करने में कामयाब हो पाती है कि नही।
*लेखक बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्विद्यालय (केंद्रीय विश्विद्यालय), लखनऊ, में बायोटेक्नोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं । (सम्पर्क सूत्र: yusuf.akhter@gmail.com)