पेंशनर्स के महंगाई भत्ते को रोकने और उनके वेतन कटौती करने की बजाय अति धनी लोगों से संसाधन जुटाने की मांग
आल इंडिया स्टेट गवर्नमेंट इम्पलाईज फैडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष लांबा ने कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे कर्मचारियों व पेंशनर्स के भत्ते रोकने की बजाय संकट की इस घड़ी में देश के 5 प्रतिशत अति धनी लोगों से संसाधन जुटाने की मांग की है। क्योंकि सरकार की जनविरोधी नव उदारवादी आर्थिक नीतियों के कारण सार्वजनिक क्षेत्र का नीजिकरण व प्राकृतिक संसाधनों की लूट से इन्होंने विगत वर्षों में भारी मुनाफे कमाए हैं। सरकार द्वारा इन धनकुबेरों को टेक्सों में लाखों करोड़ों की भारी छूट दी गई है व लाखों करोड़ों रुपए के सरकारी बैंकों के लोन बट्टटे खातों में डालें हैं। उन्होंने सवाल किया कि अगर ये धन कुबेर देश में आई इस संकट की घड़ी में भी काम नहीं आएंगे तो कब आएंगे ? इनसे संसाधन जुटाने का अधिकार पुरी तरह केन्द्र सरकार के पास ही है। सिर्फ आवश्यकता केवल दृढ़ इच्छाशक्ति की है। उन्होंने बताया कि लाकडाउन खुलते ही महंगाई भत्ते पर रोक के खिलाफ केन्द्र व राज्य सरकारों के कर्मचारियों के संगठन मीटिंग कर राष्ट्रव्यापी आंदोलन की रणनीति का ऐलान करेंगे।

 

राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष  लांबा ने बताया कि केन्द्र सरकार ऐसा करने की बजाय देश के सैनिकों,अर्ध सैनिक बलों, केन्द्रीय व राज्य सरकारों के कर्मचारियों व पेंशनर्स के महंगाई भत्ते को रोकने और उनके वेतन कटौती करने में जुटी हुई है। सरकार का यह अभियान कोरोना से जंग लड़ रहे योद्धाओं सरकारी कर्मचारियों के हौसलों को तोड़ने का ही कार्य करेगा और कोरोना के खिलाफ लड़ी जा रही जंग कमजोर पड़ सकती है। उन्होंने बताया कि ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार देश के 63 अरबपतियों की संपत्ति 2018 -19 के केन्द्रीय आम बजट जो कि 24,42,200 करोड़ है, से भी ज्यादा है। उन्होंने बताया कि ऊपर के केवल 10 प्रतिशत लोग 77 प्रतिशत धन दौलत के मालिक हैं और ऊपर के केवल 1 प्रतिशत अमीर लोगों के पास नीचे के 70 प्रतिशत लोगों से 4 गुना से ज्यादा संपत्ति है । उन्होंने कहा कि सरकार को आज की जरुरतों के लिए आवश्यक संसाधन इन 5 प्रतिशत अति अमीर लोगों से लेने चाहिएं, जिन्होंने सरकार के अनुचित व नाजायज़ संरक्षण के माध्यम से प्रत्यक्ष कर, संपत्ति कर व मजदूरों के अधिकारों पर हमला करके इसे इकट्ठा किया है। उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार ने बिना कर्मचारियों के प्रतिनिधियों को विश्वास में लिए तीन करोड़ से अधिक  कर्मचारियों व पेंशनर्स के महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी पर जुलाई,2021 तक रोक लगा दी गई है। मजेदार बात यह है कि यह निर्णय जनवरी,2020 से ही लागू कर दिया गया है। जिसका कर्मचारी व पेंशनर्स विरोध कर रहे हैं। क्योंकि अब इसी प्रकार के निर्णय राज्य सरकारों व प्राईवेट सेक्टर ने भी लेनें शुरू कर दिए हैं।

 

फैडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष लांबा ने बताया कि इसमें कोई शक नहीं कि देश आर्थिक संकट से गुजर रहा है। लेकिन देश के सरकारी विभागों के कर्मचारी  लॉकडाउन के बाद स्वयं ही कोविड-19 महामारी की चपेट में हैं। क्या उन्हीं को संकट से उबरने के लिए बलिदानी बनाना चाहिए ? कोविड-19 महामारी के संक्रमण से लड़ने के लिए भारी संख्या में कर्मचारियों को सरकारी गतिविधियों में लगाया गया है, विशेषकर उन कर्मचारियों को जिनकी सेवाओं को आवश्यक सेवाएं घोषित किया गया है जैसे स्वास्थ्य ,रक्षा, पुलिस, डाक, रेलवे, शहरी स्थानीय निकाय विभाग ,बिजली, जन स्वास्थ्य, जलापूर्ति, अग्निशमन विभाग आदि शामिल हैं। ये कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसे फैसले लेने से पहले सरकार कर्मचारी यूनियनों व फेडरेशनों से परामर्श करने की जहमत तक नहीं उठाती, जो सरकार की तानाशाही को ही दर्शाता है। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के खिलाफ जंग में कर्मचारी तन मन धन से मैदान में हैं।  केन्द्रीय व अन्य राज्यों के कर्मचारियों ने  पुरे देश में हजारों करोड़ पीएम केयर्स फंड व सीएम रिलीफ फंड में दान भी दिया है। इसके बावजूद कर्मचारियों व पेंशनर्स का महंगाई भत्ते पर रोक लगाना और सामान्य स्थिति बहाल होने पर एरियर का भुगतान भी न करना सरासर नाइंसाफी है। उन्होंने बताया कि सरकार ने पेंशनर्स व सुरक्षा बलों तक को नहीं बख्शा। जिसका हर स्तर पर विरोध किया जाएगा।

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