सहमी, सहमी दिल्ली

दिल्ली इस साल के फरवरी महीने में दहशत और वहशत की कोशिशों से बुरी तरह दहल गयी थी और ऐसी कोशिशों ने देश के दिल दिल्ली के सद्भाव के बंधन को तार तार कर दिया था। इतना ही नहीं देश और विदेशों में दिल्ली के गौरव को इतना दागदार किया कि दाग के ये निशान हटाने में बरसों लग सकते हैं। अब मार्च के महीने में चीन से आयातित वायरस ने दिल्ली को बदहाल कर दिया है और राजधानी में शिशुओं तथा सीनियर सिटीजन के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो दिल्ली सहमी-सहमी, ठहरी-ठहरी दिखाई दे रही है। भले ही इस संक्रमण से दिल्ली में सात मामले सामने आये हैं मगर चीन, इटली और यूरोप में कोरोना को लेकर मचे हाहाकार को देखते हुए दिल्लीवासी घबराये हुए हैं। जहां तक केन्द्र सरकार के प्रयासों की चर्चा करें तो कहना होगा कि सरकार द्वारा इस वायरस के फैलाव रोकने और रोगियों के उपचार तथा संदिग्ध रोगियों को अलग-थलग रखने और उन्हें सरकारी खर्च पर उपचार और सभी सुविधाएं देने की सराहना की जानी चाहिये। न केवल सरकार ने चीन, ईरान, इटली तथा जापान में योकोहामा में एक क्रूज में फंसे भारतीयों को निकाल कर लाने का साहस दिखाया है, अपितु चीन जैसै देश को मानवीय सहायता भी दी है। सार्क देशों की सहायता के लिये कोष के गठन का प्रधानमंत्री का निर्णय भारत की उदारता का परिचायक है। कोरोना के कारण अगर दिल्ली के दर्द की बात करें तो हर आदमी इस आशंका से परेशान है कि कहीं उसे  कोरोना अपने चंगुल में जकड़ कर लील तो नहीं कर जायेगा। किसी भी आदमी को कोरोना के रत्ती भर लक्षण महसूस होते हैं तो वह इसकी जांच करवाने की कोशिश करता है जो केवल स्पष्ट लक्षण और संदिग्ध रोगियों और विदेश से आने वाले लोगों की ही की जा रही है। स्कूल, कॉलेज, जिम, बाजार, थोक बाजार बंद किये जाने और बसों तथा मेट्रो में किसी के साथ किसी का अंग स्पर्श होने के बाद का डर तथा बेकरारी न उसे जीने देती है न मरने। अनाज मंडी, सब्जी मंडी. मॉल और वीकली मार्केट बंद होने के कारण दिल्लीवासियों की अपने घरों में राशन, फल सब्जियां भर कर रखने की होड़ से दाम पहुंच के बाहर हो रहे हैं। वर्क टू होम की वजह से घरों में 24 घंटे बैठे पुरुषों के कारण औरतों की आजादी संकुचित हो रही है। मनोरंजन के सभी केन्द्र बंद होने से भी दिल को कुछ-कुछ हो रहा है। लोग डरे-डरे हैं और इस परेशानी में बचाव के उपाय भूल जाते हैं। कुल मिला कर वैसी ही घबराहट है जैसी दंगों के दौरान लगे कर्फ्यू से हो रही थी।


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