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देश की राजधानी दिल्ली पर कोरोना का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। अभी दिल्ली के निवासी इस खतरे की अनदेखी करते हुये निर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि ये लोग नादान हैं मगर उन्हें नियमों को ताक पर रखने की पक्की आदत हो गयी है। इस के कई जीते जागते प्रमाण और उदाहरण मिलते हैं। यातायात नियमों के उल्लंघन को लोग अपनी शान समझते हैं, दीवार के साथ खड़े हो कर लोग लघुशंका करने से बाज नहीं आते भले ही वहां मोटे और बड़े अक्षरों में लिखा हो---यहां पेशाब करना मना है। दिल्लीवासी पंक्ति लगाने के आदि नहीं हैं और अगर मजबूरन उन्हें लाइन में इंतजार करना पड़े तो वे कोई न कोई जुगाड़ लगा कर आगे पहुंच कर अपना प्रतीक्षा समय कम कर लेते हैं। ऐसा करना उन के स्वभाव का अभिन्न अंग बन गया है। नयी पीढ़ी भी इन अप्रिय संस्कारों की कायल हो रही है। दूसरे शब्दों में इसे गैर- जिम्मेदाराना व्यवहार कहा जा सकता है। ऐसे व्यवहार के कारण दिल्ली को कोरोना का बड़ा दंश लग सकता है। अगर ऐसा हुआ तो यह तबाही से कम नहीं होगा। कोरोना को लोग अब तक हल्के में ले रहे हैं और बचाव के उपाय करने में अपनी तौहीन समझते हैं। न तो लोग घरों में टिके रहने को तैयार और न ही वे बार बार हाथ साफ करने की जहमत उठा सकते हैं । इतना ही नहीं वे अलग थलग रखे जाने पर वहां से फरार होने को बहादुरी का काम मानते हैं और इसके बाद घर के आस पास दर्जनों या सैंकड़ों लोगों को संक्रमित कर देते हैं। लोग अब भी गले मिलने और हाथ मिलाने की आदत को शिष्टाचार का पुनीत कर्त्तव्य मान रहें हैं। पार्कों में प्रेमी तन्हाई का फायदा उठा कर अपनी अंग स्पर्श की परंपरा दोहराते दिखाई देते हैं। अगर ऐसा जारी रहा तो दिल्ली में मातम का दायरा सामित करना कठिन नहीं असंभव हो जायेगा। दिल्ली में लगभग एक तिहाई आबादी जेजे कल्स्टर में रहती है । अगर यहां संक्रमण की आंधी चली तो दिल्ली कैसी लगेगी, यह कल्पना ही नहीं की जा सकती। ऐसे युग में अनपढ़ इतना तो जानते हैं कि अगर जान पर खतरा मंडरा रहा हो तो कुछ न कुछ सावधान होने में भलाई होगी। दुख का विषय है कि लोग अब भी चीन, इटली और ईरान में हुये जानी नुकसान से सबक नहीं ले रहे। उनकी लापरवाही की आदत उनको बड़ी मंहगी पड़ सकती है। उन्हीं की लापरवाही का नतीजा है कि आज दिल्ली को लॉकडाउन और कर्फ्यू के दिन देखने पड़ रहे हैं। अब भी समय है, दिल्लीवासी संभल सकते हैं। सरकार कारगर कदम उठा रही है, अगर इस ऐतिहासिक शहर के लोग जिम्मेदार बनेंगे तो दिल्ली की चहल पहल और इसके आला मुकाम को कोई नुकसान नहीं होगा, वरना जो होगा, उसे हम देख नहीं पायेंगे।