ट्रंप  की यात्रा को बनाना होगा  'ट्रंप कार्ड'


आज  अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत की दो दिन की यात्रा पर अहमदाबाद पहुंच रहे हैं । इस यात्रा को लेकर खूब चर्चा हो रही है पक्ष - विपक्ष दोनों ही ट्रंप की भारत यात्रा को अपने-अपने ट्रंप कार्ड के रूप में इस्तेमाल करने में जुटे हुए हैं एक तरफ नरेंद्र मोदी नीत भाजपा सरकार के कार्य को इसे एक ऐतिहासिक की यात्रा बताते हुए भारत एवं अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक मील का पत्थर साबित करने में तुले हैं तथा ट्रंप को अभिभूत करने के लिए मोटेरा स्टेडियम में एक अभूतपूर्व कार्यक्रम आयोजित करने के लिए सत्ता पक्ष एवं गुजरात सरकार ने भारत सरकार के साथ मिलकर पूरी ताकत एवं सामर्थ्य लगा दी है ।


वहीं विपक्षी दलों ने ट्रंप की यात्रा के ऊपर उसके शुरू होने से पहले ही उंगलियां खड़ी करनी शुरू कर दी उन्होंने कांग्रेस की अगुवाई में अनेकानेक प्रश्न सरकार पर दागने न केवल जारी रखे हैं अपितु आम जनता को यह संदेश देने की कोशिश की है कि ट्रंप की यात्रा भारत के लिए किसी भी तरह से फलीभूत होने वाली यात्रा नहीं है अपितु ट्रंप तो यहां पर अमेरिका में अगले साल होने जा रहे राष्ट्रपति के चुनावों में वहां बसे प्रवासी भारतीयों के वोट को अपनी झोली में डालने के लिए एक ट्रंप कार्ड के रूप में इस्तेमाल करने के लिए यहां आ रहे हैं ।  साथ ही साथ जिस प्रकार से दिल्ली में यमुना पार की बस्तियों को छुपाने के लिए एक दीवार खड़ी की गई है उस पर भी सरकार के ऊपर लगातार हमले जारी हैं इतना ही नहीं जिस केजरीवाल सरकार को पूरे 5 वर्ष भाजपा नाकारा सिद्ध करने में जुटी रही उचित सरकार के हैप्पी स्कूल में परिवार को यह दिखाने के लिए ले जाया जाना है कि शिक्षा के क्षेत्र में भारत ने कितनी तरक्की की है मगर पेंच यहां भी फसा है मौके पर और अंतिम समय में से मुखातिब होने वाले लोगों की सूची में से दिल्ली के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एवं उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का नाम सूची से हटाया जाना भी विवादों को जन्म दे रहा है ।


अब राजनीति तो राजनीति है इसमें कौन कितना सच बोलता है और कौन अपने दल और अपनी खुद की राजनीतिक हैसियत को तोलने बढ़ाने और दूसरों की फजीहत करने के लिए इस अवसर को इस्तेमाल करना कर रहा है यह कहना बड़ा मुश्किल काम है लेकिन एक बात तो जरूर है की जिस प्रकार से ट्रंप ने भारत यात्रा से पूर्व अजीबोगरीब बयान दिए वह उनकी अपनी उस छवि को ही पुख्ता करते हैं जिसके अनुसार अंतरराष्ट्रीय जगत में सबसे बड़े और सबसे ताकतवर देश का राष्ट्रपति होने के बावजूद उनकी छवि एक गंभीर और जिम्मेदार नेता के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तो नहीं बन पाई है।


अब ट्रंप आ रहे हैं तो निश्चित ही इस यात्रा के कुछ निहितार्थ भी अवश्य ही होंगे ऐसा तो नहीं हो सकता कि दुनिया के सबसे ताकतवर और प्रभावशाली देश का राष्ट्रपति बस यूं ही केवल अपने मित्र नरेंद्र मोदी को खुश करने के लिए या मात्र अपनी आगामी कार्यकाल के लिए वहां के हिंदुस्तानी प्रवासी मतदाताओं का वोट लेने मात्र के लिए भारत जैसे उभरते हुए एवं प्रभावशाली देश की यात्रा पर निकल पड़े निश्चित रूप से उनके और उनकी 10000 लोगों की भारत आ रही टीम के दिमाग में कुछ ना कुछ तो ठोस योजनाएं होंगी ही ।


वैसे भी अमेरिकियों के बारे में एक आम राय यह है कि वह बिना कोई निहित लक्ष्य निर्धारित किए बगैर और बिना अपने देश और अपनी भलाई की सोचे बगैर किसी से बात नहीं करते यात्रा की तो बात ही छोड़ो वह उनके अनुसार न चलने वाले देशों और नेताओं को कभी लिफ्ट नहीं देते । कम से कम भारत तो इस अनुभव को बहुत अच्छी तरह से समझता है कि शीत युद्ध के दौरान किस प्रकार से भारत के खिलाफ अमेरिका अपनी तलवारें तानी रखता था वह अपने हितों के लिए कम से कम पिछले 50 वर्षों से पाकिस्तान के आतंकवाद परस्त होने के बावजूद भारत की तकलीफों को न केवल नजरअंदाज करता रहा अपितु 19 सौ 65 के युद्ध में तू उसने पाक को पैटन र्टैंक तक दिए और भारत को दिए जाने वाले गेहूं की सप्लाई तक रोक दी थी यानी भारत को खुलकर कभी अमेरिका ने समर्थन नहीं दिया।


लेकिन दूसरा पहलू यह भी है कि राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जिम्मी कार्टर भारत आए और तब भारत के प्रति अमेरिका के रूप में काफी नरमी देखी गई परंतु रोनाल्ड रिगन और जॉर्ज बुश के समय में एक बार फिर से दोनों देश 36 के रिश्तो में चले गए मगर इस बीच ओबामा की सरकार के आने पर एक बार फिर से भारत के प्रति अमेरिका के रुख में थोड़ी सी नरमी दिखाई दी पुनश्च अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नरमियां और सख्तियां यूं ही नहीं होती बल्कि इनके पीछे कुछ निहितार्थ होते हैं । पहले अमेरिकी रुख की सख़्ती की वजह थी हमारा रूस के प्रति अत्यधिक झुकाव तथा उससे अमेरिका को होने वाली व्यापारिक हानियां मगर अब अगर भारत के प्रति अमेरिका मीठा मीठा बोल रहा है तो इसके पीछे भी एकदम स्पष्ट रणनीति कूटनीति एवं राजनीति है आज भारत एशिया के सबसे ज्यादा प्रभावशाली 2 देशों में शुमार है और दूसरा भारत से अधिक प्रभावशाली देश चीन अमेरिका के साथ खड़ा नहीं दिखता बल्कि वह तो अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए अमेरिका को समय-समय पर आंखें भी दिखाता है खरी-खोटी भी सुनाता है और उसके व्यापारिक हितों पर चोट भी कर देता है अब इन सभी नुकसानों की पूर्ति के लिए अमेरिका के पास एशिया में भारत से बेहतर औजार नहीं है बस समझ लीजिए यही सबसे बड़ी वजह है भारत के प्रति अमेरिका के झुकाव की आज भारत अमेरिका के साथ बहुत बड़ी मात्रा में व्यापार कर रहा है मगर दूसरा सच यह भी है कि हम अमेरिका से पाते बहुत कम और उसे देते हो ज्यादा है। मगर इतना सब होने के बावजूद भी ट्रंप सत्ता में आते ही अमेरिका में जाने वाले भारतीयों के अवसरों को कम करने या खत्म करने में कतई गुरेज नहीं करते आज वहां पिछले 20 वर्षों में पहुंचने वाले भारतीयों की संख्या सबसे कम हो गई है वहां पर भारतीयों को मिलने वाला रोजगार आज सबसे कम हो चला है इसका नुकसान केवल भारत को ही हुआ हो ऐसा भी नहीं है कमोबेश ऐसी ही स्थिति चीन जापान कोरिया ईरान और दूसरे एशियाई देशों के नागरिकों को भी यह नुकसान हुआ है और मजेदार बात यह है कि इन सब के वहां ने पहुंचने या काम ने बानी की परिणीति खुद अमेरिकियों के लिए भी नुकसानदायक सिद्ध हुई है आज वहां कम पढ़े लिखे एवं अर्ध कुशल कर्मचारी मिलना बहुत मुश्किल काम हो गया है कहा तो यहां तक जा रहा है कि वहां के पढ़े-लिखे लोग वहां के अपेक्षाकृत अनपढ़ लोगों से कम वेतन पा रहे हैं।


अब एक  सवाल है  भी उठाया जा रहा है कि क्या इस यात्रा के दौरान अमेरिका से व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर होंगे?  इस सवाल का जवाब 'ना' लगता है। क्योंकि ट्रंप भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच व्यापार समझौता होने की उम्मीदें कम हैं. ट्रंप ने स्वयं इस बारे में कहा है कि वह समझौते को बाद के लिये बचाकर रख रहे हैं । उन्होंने ज्वायंट बेस एंड्रयूज में उन्होंने संवाददाताओं से कहा था  ''हम भारत के साथ व्यापार समझौता कर सकते हैं. लेकिन मैं इस बड़े समझौते को बाद के लिये बचा रहा हूं.''


भारत के साथ चल रही व्यापार वार्ता में ट्रंप सरकार का प्रतिनिधित्व अमेरिका के व्यापार मंत्री रॉबर्ट लाइटहाइजर कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो लाइटहाइजर के ट्रंप के साथ भारत यात्रा पर आने की उम्मीदें कम हैं ।


ट्रंप ने अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों को लेकर भी अप्रसन्नता जाहिर की है उनके ही शब्दों में ,"भारत हमारे साथ अच्छा बर्ताव नहीं कर रहा है. लेकिन मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पसंद करता हूं.''


हालांकि ट्रंप डॉलर के प्रति भारतीयों की दीवानगी से गदगद हैं ।  पर अमेरिका की कंपनियों के भारत में प्रदर्शन से वह खुश नहीं होंगें क्योंकि, अमेरिकी फंडों के पास भारतीय शेयरों का 33.21 फीसदी हिस्सा है. इसमें लग्जमबर्ग, मॉरीशस और सिंगापुर के रास्ते होने वाला अमेरिकी निवेश शामिल नहीं है.भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भी अमेरिकी कंपनियों की बड़ी हिस्सेदारी है। भारत में निवेश के मामले में अमेरिका पांचवें पायदान पर है. वह इस मामले में इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस और चीन से आगे है। भारत में इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस्तेमाल में भी अमेरिकी डिजिटल कंपनियों की बड़ी हिस्सेदारी है।


दूसरी तरफ भारत में अमेरिकी कंपनियों का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं है। मोटरसाइकिल के प्रतिष्ठित ब्रांड हार्ली डेविडसन की भारत में मौजूदगी नाममात्र की है। भारतीय बाजार में 25 साल से मौजूद होने के बावजूद फोर्ड की बाजार हिस्सेदारी सिर्फ 2.5 फीसदी है।  अमेरिकी बैंक भारत में रिटेल बैंकिंग सेवाएं नहीं देते हैं। भारत के तेजी से बढ़ते म्यूचुअल फंड बाजार में अमेरिकी म्यूचुअल फंडों की हिस्सेदारी बहुत कम है।लेकिन, भारत में कई क्षेत्रों में अमेरिका की ताकत बढ़ भी  रही है. भारत में हॉलीवुड फिल्मों की मौजूदगी इसका उदाहरण है। पिछले साल भारत में हॉलीवुड फिल्मों ने शानदार बिजनेस किया। बॉलीवुड के कुल बिजनेस का यह करीब आधा था।


अस्तु, ट्रंप की भारत यात्रा दूसरे राष्ट्रपतियों की तरह ही एक आपसी समझ को बढ़ाने पारस्परिक संबंधों को मजबूत करने एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक दूसरे के प्रभाव एवं ताकत का अपने हितों के लिए इस्तेमाल करने तथा अपने देशवासियों तथा उत्पादों को दूसरे देश के मुकाबले ज्यादातर जी दिलवाने की नीति के साथ किए जाने वाली यात्रा है और ऐसा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के क्षेत्र में बहुत साधारण सी बात है कुल मिलाकर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अपना चुनाव जीतने के लिए भारत को एक ट्रंप कार्ड की तरह इस्तेमाल करने से नहीं चूकेंगे । याद कीजिए नरेंद्र मोदी ने भी लोकसभा के आम चुनावों से ठीक पहले अमेरिकी यात्रा का इस्तेमाल अपना प्रभामंडल बढ़ाने में बड़ी चतुराई के साथ किया था तो यदि ट्रंप ऐसा करते हैं तो इसमें कोई हैरत वाली बात नहीं है हां अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम ट्रंप के ट्रंप कार्ड को अपने हितों के लिए कितना कैसे और कहां तक उपयोग कर पाते हैं ।


याद रखिए , अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के क्षेत्र में केवल अभिभूत होने या सब कुछ हरा हरा मान लेने से सिद्ध नहीं हुआ करता है अपितु यदि आपको किसी से कुछ लेना हो तो उसके लिए हर प्रकार की रणनीति एवं कूटनीति का सहारा लेना होता है और वर्तमान यात्रा के संदर्भ में कहा जाता कहा जा सकता है कि यदि हमारे राजनयिक अपने बुद्धि कौशल एवं कूटनीतिक रण कौशल का सही एवं सटीक इस्तेमाल करें तो ट्रंप से हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बहुत कुछ ले सकते हैं । मगर याद यह भी  रखिए कि ट्रंप राष्ट्रपति बनने से पहले अमेरिका के व्यापारिक टाइकून थे और वें जानते हैं कि किस तरह से कम से कम देकर ज्यादा से ज्यादा कमाया जा सकता है ।


अब यह  तो यह तो बाद में ही पता चलेगा की ट्रंप की इस यात्रा से किस ने कितना कमाया या खोया है अभी तो भारत ट्रंप के स्वागत में पलक पावडे बिछाए खड़ा दिखता है और अतिथि का स्वागत करना हमारी परंपरा रही है इस पर विपक्ष को भी बहुत ज्यादा चिल्लपौं  नहीं मचानी चाहिए।


 


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