नाव, चुनाव की

दिल्ली में जबसे दो दलों के बजाय तीन दलों के बीच विधानसभा चुनाव में मुकाबला होने लगा है, आश्चर्यजनक परिमाण मिल रहे हैं। इससे पहले हुये विधानसभा चुनाव में किसी न किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलता रहा, पहली बार भगवा दल को तो इसके बाद लगातार तीन बार, देश की सबसे पुरानी पार्टी को शानदार जीत मिली थी। दो दलों के बीच हुये चुनाव में एक पार्टी की नाव डूबती रही। 2013 के चुनाव में एक नयी पार्टी के ताल ठोकने के कारण दोनों स्थापित पार्टियों को नतीजों पर काफी हैरानी हुई क्योंकि किसी ने नयी पार्टी को इतना मजबूत नहीं समझा था। इस चुनाव में खंडित जनादेश आया और नयी पार्टी को अपनी सबसे बड़ी दुश्मन देश की पुरानी पार्टी के समर्थन से सरकार बनानी पड़ी जो दिनों के लिहाज से अर्धशतक नहीं बना सकी। मगर इस छोटे कार्यकाल में सरकार के मुखिया ने पानी माफ और बिजली हाफ.-ये दो ऐसे काम कर दिये जिनसे उनकी पार्टी और सीएम की चर्चा पूरे देश में होने लगी। नयी पार्टी को  अपने प्रफार्मर होने का अभूतपूर्व फायदा 2015 के विधानसभा चुनाव में मिला। उसने पुरानी पार्टी को सिफर का दंश दिया और भगवा दल को तीन की गिनती से आगे बढ़ने नहीं दिया। 2020 के इस चुनाव में भगवा दल और पुरानी पार्टी अंदाजा नहीं लगा पा रहीं कि पिछले 5 वर्ष में नयी पार्टी की सरकार ने जो थोक में  मुफ्तखोरी की आदत डाली वो क्या गुल खिलायेगी। ये दोनों पार्टियां यह कहने से बच रहीं हैं कि इस तरह की मुफ्तखोरी को जायज नहीं ठहराया जा सकता।  कारण यह है कि ऐसा कहने से दोनों पार्टियों को नुकसान हो सकता है। अब दिल्ली के चुनाव में हमला करने वाली अग्रिम पंक्ति में अमित, अरविंद और चोपड़ा दिखायी दे रहे हैं। नयी पार्टी, भगवा दल से सवाल कर रही है कि उसका सीएम दावेदार कौन है। नयी पार्टी का मानना है कि पुरानी पार्टी से यह सवाल पूछना सामायिक नहीं । नयी पार्टी ने प्रचार में  सारे स्टार कैंपेनर तैनात कर दिये हैं। पुरानी पार्टी अभी दिल्ली के नेताओं पर निर्भर है, इस पार्टी के वे नेता शीलाजी के काम का फायदा ले रहे हैं जो उन्हें देखते नहीं थे । उसके बड़े लीडर और पार्टी परिवार के चमकते चेहरे  प्रचार में कूदेंगे। पुरानी पार्टी के दिल्ली के मुखिया चोपड़ा ने आराम कर रहीं सभी पुरानी तोपों को उम्मीदवार बनाने में कामयाबी हासिल की है। इसका मतलब यह नहीं कि इससे शर्तिया फायदा होगा। दिल्ली में सत्तारुढ़ पार्टी तथा  भगवा दल का प्रचार तेज हो रहा है मगर पुरानी पार्टी को ऐसा दिखा पाने का भरोसा है। उधर भगवा दल को देश के पीएम द्वारा किये जाने वाले प्रचार का इंतजार है। सबसे बड़ा सवाल है कि नतीजों में कौन से दो दलों की नाव डूबेगी।


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