देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था "विश्व हिंदी साहित्य परिषद्" और दिल्ली विश्वविद्यालय के  "हंसराज महाविद्यालय" के संयुक्त तत्वावधान में "लघु पत्रिकाओं का अंतरराष्ट्रीय संदर्भ" संगोष्ठी का भव्य आयोजन संपन्न।

आज नयी दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में "लघु पत्रिकाओं का अंतरराष्ट्रीय संदर्भ" विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता थे जाने-माने हिंदी लेखक जवाहर कर्णावट, मुख्य अतिथि के रूप में जाने-माने अधिवक्ता एवं समाजसेवी डॉ. हुकुमचंद गणेशिया, विशिष्ट वक्ता के रूप में कवि-लेखक डॉ.विवेक गौतम एवं भारतीय राजस्व सेवा के वरिष्ठ अधिकारी कुमार अविकल मनु उपस्थित थे।


 

कार्यक्रम का सफल संयोजन-संचालन सुप्रसिद्ध कवि-संपादक डॉ.आशीष कंधवे ने किया।


 

मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए जवाहर कर्णावट ने लघु पत्रिकाओं के राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर विस्तार पूर्वक चर्चा की।उन्होंने बताया कि लघु पत्रिकाएँ किस तरह साहित्यिक चेतना को जागृत करने में अपनी भूमिका हमेशा निभाती रही हैं ।

 

मुख्य अतिथि श्री गणेशिया ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिंदी और भारतीय भाषाओं के संरक्षण का सबसे महत्वपूर्ण उपाय यह है कि नई पीढ़ी भाषाओं का ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग करे तथा साहित्य के प्रचार-प्रसार में लघु पत्रिकाओं का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 


विशिष्ट वक्ता डॉ. विवेक गौतम ने अपने उद्बोधन देते हुए कहा कि लघु पत्रिकाएँ साहित्य की दृष्टि में शरीर में रक्त को प्रवाहित करने वाली धमनियों के समान हैं तथा जिस प्रकार  धमनियों के बिना रक्त प्रवाह नहीं हो सकता  उसी प्रकार से लघु पत्रिकाओं के बिना साहित्यिक विमर्श तथा साहित्य के विस्तार की कल्पना और संभावनाएँ लगभग असंभव सी हो जाती हैं ।

 

विशिष्ट अतिथि संयुक्त आयुक्त कुमार अविकल "मनु" ने अपने वक्तव्य में कहा कि उन्होंने देश के एक अत्यंत पिछड़े राज्य झारखंड से एक साहित्यिक पत्रिका के जन्म, उसके प्रकाशन और उसके संघर्ष को स्वयं देखा है । इसलिए मैं कह सकता हूँ कि साहित्य लघु पत्रिकाओं का योगदान हिंदी साहित्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसका इतिहास अनेक उपलब्धियों से भरा पड़ा है ।

 

इस कार्यक्रम के संयोजन-संचालन की ज़िम्मेदारी बखूबी निभाते हुए "आधुनिक साहित्य" के संपादक डॉ.आशीष कंधवे ने भी लघु पत्रिकाओं के संदर्भ में अपने विचारों से उपस्थित श्रोताओं को अवगत कराया और कहा कि जो आज बड़े साहित्यकार हैं, वे भी कभी लघु पत्रिकाओं में छपते थे और जो आज लघु हैं कल लघु पत्रिकाओं में छप कर बड़े साहित्यकार हो जाएँगे । 

यही लघु पत्रिकाओं की सबसे बड़ी उपलब्धि है ।

 

इस अवसर पर विशेष रूप से भोपाल से पधारे रामायण केंद्र के निदेशक एवं शिक्षाविद् राजेश श्रीवास्तव ने इस अवसर पर कहा कि हिंदी लघु पत्रिकाओं की चर्चा करते समय मुझे  विनय पत्रिका का स्मरण आता है।यह तुलसीदास रचित लघु पत्रिका ही है जिसमें देवताओं की स्तुति के माध्यम से भगवान राम तक अपनी बात को पहुँचाया गया है। 

 

दिल्ली के जाने-माने हिंदी-सेवी और कवि प्रेम भारद्वाज "ज्ञानभिक्षु" भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे।

 

दिल्ली की कई अन्य प्रसिद्ध हस्तियों ने भी इस सत्र में उपस्थित होकर कार्यक्रम को सार्थक बनाया, जिनमें तकनीकी हिंदी विशेषज्ञ बालेंदु शर्मा दधीच, केंद्रीय हिंदी निदेशालय में उपनिदेशक डॉ. नूतन पांडेय, डॉ. दीपक पांडेय और मास्को विश्वविद्यालय से डॉ. सफ़ार्मो तोलिबो आदि महत्वपूर्ण रहे ।

 

सभी अतिथियों का स्वागत विश्व हिंदी साहित्य परिषद् की महासचिव ममता गोयनका एवं हंसराज कॉलेज की प्राचार्या डॉ. रमा ने किया ।

 

कार्यक्रम का समापन जयपुर से पधारे हुए प्राच्य विद्या और भारतीय संस्कृति के  लेखक-ज्योतिषाचार्य पं. हरिशंकर शर्मा ने अपने सांस्कृतिक उद्बोधन से किया और उपस्थित सभी अतिथियों एवं श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया।

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