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दिल्ली में 2020 के विधानसभा चुनाव में नामांकन पत्र भरने से पहले दल बदल करने वाले विधायकों और नेताओं का मिक्सड लक रहा है। इससे यह भी साबित हो गया है कि अब नेता एक पार्टी की विचारधारा को नापसंद करने पर दल नहीं बदलते अपितु अपने फायदों के लिये दल बदल कर खुद पर अवसरवादी का लेबल लग जाने को लेकर बुरा नहीं मानते। कई नेता तो सदैव सत्ता के आस पास बने रहने हैं तथा सत्ता में निकट भविष्य में महत्वपूर्ण पद मिलने की उम्मीद में पाला बदल लेते हैं। अब दल बदल की बीमारी से कॉडर और सिद्धांत वाली पार्टियां भी परेशान हैं। दिल्ली में पहली बार ऐसा हुआ कि सबसे पुरानी परिवारवादी पार्टी तथा अनुशासित राष्ट्रवादी विश्व की सबसे बड़ी भगवा पार्टी दोनों को बिहार की क्षेत्रीय पार्टियों को अपने शाही भोज की थाली से लजीज टुकड़े देने पड़े। आप भले ही इसे इन दोनों दलों की कमजोरी या मजबूरी कहें लेकिन हम ऐसा नहीं मानते। जब महाराष्ट्र में कट्टर हिंदूवादी शिव सेना देश की कथित सेक्यूलर सबसे पुरानी पार्टी के साथ सत्ता का आनंद ले सकती है तो दिल्ली की पार्टियों को क्यों बुरा भला कहा जाये। सबसे पुरानी पार्टी ने कई दल बदलुओं को सहारा दिया। इतना ही नहीं पार्टी में आने वाले दल बदलुओं को फटाफट गले लगा कर तुरंत टिकट का मधुर उपहार थमा दिया मगर अपनी पार्टी की सरकार में तेरह साल तक मंत्री रहे राज कुमार चौहान के साथ अपमान और अन्याय किया। चौहान का 2019 के चुनाव में भी सबसे पुरानी पार्टी ने उस समय अपमान किया था जब उनको लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाने के बाद अपनी पार्टी के एक और पूर्व विधायक को प्रत्याशी बनाया था। इससे व्यथित हो कर चौहान ने भगवा दल का दामन थामा और इस पार्टी ने 2020 के विधानसभा चुनाव के लिये अपनी घोषणा पत्र समिति का सदस्य बनाया और चौहान ने समिति की बैठकों में भी भाग लिया । भगवा दल चौहान को टिकट देने को भी तैयार था। इस बीच पुरानी पार्टी के कुछ नेता चौहान को बहला फुसला कर पुरानी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बड़ी मैडम के पास ले गये, अखबारों में तस्वीरें छपीं मगर टिकट नहीं दिया गया। चौहान न इधर के रहे न उधर के। वैसे तो एक दिन सबसे नयी पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर देश की पुरानी पार्टी में आये आदर्श शास्त्री को टिकट से नवाजा गया । इसके अलावा पिछले साल कांग्रेस छोड़ कर भगवा दल में आये भीष्म शर्मा और अंबरीश शर्मा को पुरानी पार्टी ने शामिल होते ही टिकट थमा दिया। भगवा दल ने नयी पार्टी के बागी कपिल मिश्रा और अनिल वाजपेई को तो टिकट दिया मगर देवेन्द्र सहरावत और गुगन सिंह को भाव नहीं दिया।