समस्त महापातकों को नाश करने वाली मत्स्य द्वादशी

अवतारवाद के समर्थकों के अनुसार सृष्टि में सभी प्राणी पूर्वनिश्चित धर्मानुसार अपने -अपने कार्य करते रहते हैं और जब कभी धर्म की हानि की होती है तो सृष्टिकर्ता धर्म की पुनः स्थापना करने के लिये धरती पर अवतार लेते हैं। आज तक सृष्टि पालक भगवान विष्णु - मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण और बुद्ध नौ बार धरती पर अवतरित हो चुके हैं और दसवीं बार भविष्य में कलयुग के अंत में इस युग के अन्धकारमय और निराशा जनक वातावरण का अन्त करने के लिए कल्की (कलंकि) अवतार लेंगे। सभी अवतारों की कथायें अवतारवाद की समर्थक पुराणों में विस्तार पूर्वक संकलित हैं। विष्णु के प्रथम अवतार मत्स्यवतार की कथाएं भी भागवत पुराण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, अग्नि पुराण आदि अवतार समर्थक पुराणों सहित अन्यान्य पौराणिक ग्रन्थों में अंकित प्राप्य हैं, जिनमें मत्स्यवतार की कथा, स्वरूप, आवश्यकता व महिमा व पूजा विधि का विस्तार से वर्णन किया गया  है। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी के उपरांत द्वादशी को मत्स्य द्वादशी मनाई जाती है । मत्स्य द्वादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर दैत्य हयग्रीव का वध कर वेदों की रक्षा की थी। जिस कारण मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भगवान विष्णु  के मत्स्य अवतार की पूजा-आराधना की जाती है। संसार के रक्षक भगवान विष्णु जी की उपासना से भक्त के सारे संकट दूर हो जाते है। उल्लेखनीय है कि मत्स्य द्वादशी पौराणिक ग्रन्थों में उल्लिखित एक व्रत संस्कार है। जिसका व्रत्तारम्भ मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी पर नियमों का पालन करके किया जाता है। कृत्यकल्पतरु, व्रतखण्ड 311-317 ,  हेमाद्रि ग्रन्थ (व्रत खंड 0 1, 1022-26, वराह पुराण 39/26-77,कृत्यरत्नाकर 462-466 आदि ग्रन्थों के अनुसार एकादशी पर उपवास, द्वादशी को मन्त्र के साथ मिट्टी लाकर उसे आदित्य को अर्पित करना, शरीर पर लगाना एवं स्नान करना। इस व्रत में चार घटों को पुष्पों के साथ जल से भर उन्हें तिल की खली से ढँकना और उन्हें चार समुद्र के रूप में जान और मान नारायण पूजन करने का विधान है । विष्णु की मछली के रूप में स्वर्ण प्रतिमा का निर्माण तथा पूजा; जागर; चारों घटों का दानकरना चाहिए। इस व्रत को करने से महापातक भी नष्ट हो जाते हैं।


पुराणों में वर्णित मत्स्य अवतार की कथा के अनुसार मत्स्यावतार भगवान विष्णु का अवतार है जो उनके दस अवतारों में से एक है। विष्णु को पालनकर्ता कहा जाता है । अत: वे ब्रह्मांड की रक्षा हेतु विविध अवतार धारण करते हैं। मान्यता है कि जब संसार को किसी प्रकार का खतरा होता है तब भगवान विष्णु अवतरित होते हैं। ब्रह्मांड की आवधिक विघटन के प्रलय के ठीक पहले जब प्रजापति ब्रह्मा के मुँह से वेदों का ज्ञान निकल गया, तब असुर हयग्रीव ने उस ज्ञान को चुराकर निगल लिया। वेद ज्ञान के लुप्त होने से चारों ओर अज्ञानता का अंधकार फैल गया और पाप तथा अधर्म का बोलबाला हो गया। तब भगवान विष्णु अपने प्राथमिक अवतार मत्स्य के रूप में अवतीर्ण हुए और स्वयं को राजा सत्यव्रत मनु के सामने एक छोटी, लाचार मछली बना लिया। कथा के अनुसार एक बार राजा सत्यव्रत कृतमाला नदी के तट पर तर्पण कर रहे थे तो एक छोटी मछली उन की अंजली में आकर विनती करने लगी कि वह उसे बचा लें। राजा सत्यव्रत ने एक पात्र में जल भर कर उस मछली को सुरक्षित कर दिया किन्तु शीघ्र ही वह मछली पात्र से भी बड़ी हो गयी। राजा ने मछली को क्रमशः तालाब, नदी और अंत में सागर के अन्दर रखा पर हर बार वह पहले से भी बड़े शरीर में परिवर्तित होती गयी। अंत में मछली रूपी विष्णु ने राजा सत्यव्रत को एक महाभयानक बाढ़ के आने से समस्त सृष्टि पर जीवन नष्ट हो जाने की चेतावनी दी। तदन्तर राजा सत्यव्रत ने एक बड़ी नाव बनवायी और उस में सभी जड़ी-बूटी, बीज और पशुओं, सप्त ऋषि आदि धान्य, प्राणियों के मूल बीज भर दिये और सप्तऋषियों के साथ नाव में सवार हो गये। मछली ने नाव को खींच कर पर्वत शिखर के पास सुरक्षित पहँचा दिया और उन्हें विनष्ट होने से बचाया । इस प्रकार मूल बीजों और सप्तऋषियों के ज्ञान से महाप्रलय के पश्चात सृष्टि पर पुनः जीवन का प्रत्यारोपण हो गया। कथा के अनुसार एक अतिविशाल मछली हयग्रीव को मारकर वेदों को गुमनाम होने से बचाया और उसे ब्रह्मा को दे दिया। जब ब्रह्मा अपने नींद से उठे जो प्रलय के अन्त में था, इसे ब्रह्म की रात पुकारा जाता है, जो गणना के आधार पर 4 320 000 000 वर्षों तक चलता है। जब ज्वार ब्रह्मांड को भस्म करने लगा तब एक विशाल नाव आया, जिस पर सभी चढ़े। मत्स्य भगवान ने उसे सर्पराज वासुकि को डोर बनाकर बाँध लिया और सुमेरु पर्वत की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में भगवान मत्स्य नारायण ने मनु (सत्यव्रत) को मत्स्य पुराण सुनाया और इस तरह प्रभु ने सबकी प्रलय से रक्षा की, तथा पौधों तथा जीवों की नस्लों को बचाया और मत्स्य पुराण की विद्या को नवयुग में प्रसारित किया। इस कथा का विशलेषण हज़रत नोहा की आर्क के साथ किया जा जाता है जो बाईबल में संकलित है। यह कथा डी एन ए सुरक्षित रखने की वैज्ञानिक क्षमता की ओर संकेत भी करती है जिस की सहायता से सृष्टि के विनाश के बाद पुनः उत्पत्ति की जा सके।


अवतारवाद की विभिन्न व्याख्याओं के मध्य कुछ विद्वानों के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतार सृष्टि की जन्म प्रक्रिया को दर्शाते हैं। इस मतानुसार जल से सभी जीवों की उत्पति हुई अतः भगवान विष्णु सर्व प्रथम जल के अन्दर मत्स्य रूप में प्रगट हुये। फिर कुर्मा बने। इस के पश्चात वराह, जो कि जल तथा पृथ्वी दोनो का जीव है। नरसिंह, आधा पशु – आधा मानव, पशु योनि से मानव योनि में परिवर्तन का जीव है। वामन अवतार बौना शरीर है तो परशुराम एक बलिष्ठ ब्रह्मचारी का स्वरूप है जो राम अवतार से गृहस्थ जीवन में स्थानांतरित हो जाता है। कृष्ण अवतार एक वानप्रस्थ योगी, और बुद्ध परियावरण का रक्षक हैं। पर्यावरण के मानवी हनन की दशा सृष्टि को विनाश की ओर धकेल देगी। अतः विनाश निवारण के लिये कलकी अवतार की भविष्यवाणी पौराणिक साहित्य में पहले से ही की गयी है। एक अन्य मतानुसार दस अवतार मानव जीवन के विभिन्न पड़ावों को दर्शाते हैं। मत्स्य अवतार शुक्राणु है, कुर्मा भ्रूण, वराह गर्भ स्थति में बच्चे का वातावरण, तथा नर-सिंह नवजात शिशु है। आरम्भ में मानव भी पशु जैसा ही होता है। वामन बचपन की अवस्था है, परशुराम ब्रह्मचारी, राम युवा गृहस्थी, कृष्ण वानप्रस्थ योगी तथा बुद्ध वृद्धावस्था का प्रतीक है। कलकी मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म की अवस्था है।


पौराणिक मत के अनुसार सनातन ब्रह्म ने यज्ञों की सिद्धि के लिए अग्नि, वायु, सूर्य एवं अंगिरा ने तपस्या की और ऋग्वेद,यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद को प्राप्त किया, और ब्रह्मा तथा मनुष्यों को इसका ज्ञान दिया, लेकिन एक बार ब्रह्मा की असावधानी से दैत्य हयग्रीव ने वेदों को चुरा लिया। हयग्रीव द्वारा वेदों को चुरा लेने के कारण ज्ञान लुप्त हो गया। समस्त लोक में अज्ञानता का अंधकार फ़ैल गया। तब भगवान विष्णु  ने धर्म की रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण कर दैत्य हयग्रीव का वध किया और वेदों की रक्षा की तथा भगवान ब्रह्मा को वेद सौप दिया। पौराणिक मान्यता के अनुसार सतयुग ,द्वापरयुग, त्रेतायुग और कलयुग चार युग हैं और हर युग को ब्रह्मा का एक दिन माना गया है। हर एक युग के बाद ब्रह्मा सो जाते हैं। जिस दिन ब्रह्मा सो जाते है उस दिन संसार का सर्जन रुक जाता है और जब भी संसार विपदा में पड़ता है तब भगवान विष्णु संसार को इस विपदा से उबारते है । इसके सम्बन्ध में अग्नि पुराण में अंकित एक कथा मिलती है की जब सतयुग खत्म होने की कगार पर था और एक युग ख़त्म होने के पश्चात जब ब्रह्मा सो रहे थे तब ब्रह्मा के नाक से एक हयग्रीव नामक दानव उत्पन हुआ जिसने ब्रह्मा के सोते समय उनके वेदों को चुरा लिया और समुद्र में जा के छुप गया। जब भगवान विष्णु को इस बात का पता चला तो वे चिंतन में खो गए क्योंकि रक्षक होने के कारण वेदों का ज्ञान अगले युग तक पहुँचाना विष्णु का दायित्व था। तभी भगवान विष्णु ने राजा मनु को तपस्या में लीन देखा तथा उन्हें अहसास हुआ की यह व्यक्ति वेदों को बचा सकता है । लोक मान्यतानुसार सृष्टि का आरम्भ जल से हुआ है और वर्तमान काल में भी जल ही जीवन है। अतः मत्स्य द्वादशी का विशेष महत्व है। भगवान विष्णु के दस अवतार में प्रथम अवतार मत्स्य अवतार है जिस कारण मत्स्य द्वादशी पृथ्वी वासी के लिए अति शुभ व्रत है। मत्स्य द्वादशी के दिन भगवान श्री विष्णु भक्तों के संकट दूर करते है तथा भक्तो के सब कार्य सिद्ध करते है। स्नान-ध्यान से निवृत हो इस दिन भगवान श्री हरी विष्णु जी के नाम से उपवास रख पूजा-अर्चना व् आराधना करना चाहिए। मत्स्य द्वादशी के दिन जलाशय या नदियों में मछली को चारा डालना चाहिए।


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