प्याज ने रुलाया

दिल्ली और प्याज का बहुत पुराना नाता है और सभी को अक्सर याद आता है। इतना ही नहीं यह प्याज 1998 के विधान सभा चुनाव में सत्ता गंवा चुकी पार्टी को आज भी हर पल सताता है क्योंकि प्याज की वजह से बेदखल हुई पार्टी चार बार हुये विधान सभा चुनाव के बाद भी विजयश्री प्राप्त नहीं कर सकी।  2015 फरवरी में होने वाले विधान सभा चुनाव में हालांकि पिछले इतिहास को देखते हुये सत्तारुढ़ पार्टी को भयभीत होना चाहिये  मगर वह चिंतित दिखायी नहीं देती। इसका कारण यह है कि वह प्याज के आंसुओं का ठीकरा केन्द्र सरकार पर फोड़ने की पुरजोर कोशिश में  है। सबसे अहम बात  यह है कि दिल्ली की वर्तमान सरकार के पास अखबारों में अपने पक्ष में लिखवाने की कोई अनूठी कला है और दिल्ली में ऐसी कला अपने अपने शासन काल में  न तो देश की सबसे पुरानी पार्टी और न ही भगवा पार्टी विकसित कर सकी थी। इन दोनों दलों ने न ही कभी ऐसी कला विकसित करने के बारे में शायद सोचा होगा। मुद्दा यह है कि प्याज से सबसे ज्यादा पीड़ित गरीब वर्ग दिखायी देता है और इस वर्ग को झाड़ू निशान वाली पार्टी का कट्टर समर्थक बताया जाता है और यह वर्ग इस पार्टी को थोक में वोट भी डालता रहा है। संपन्न वर्ग को  प्याज के दाम आसमान छूने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता ।  माना कि मौसम के मिजाज बिगड़ने से प्याज की फसल को नुकसान पहुंचा मगर ऐसे कोई ठोस प्रमाण नहीं कि देश भर में किसी राज्य सरकार ने जमाखोरों के खिलाफ कड़ी कारर्वाई की हो। एक सवाल यह भी है कि क्या प्याज के बिना रसोई उजाड़ बन जाती है, इसका जवाब है नहीं, तो हम क्या कुछ दिन या कुछ सप्ताह के लिये प्याज को तलाक नहीं दे सकते। अगर हम प्याज को तीन तलाक दें तो प्याज लुढ़क कर हमारे कदमों में आ गिरेगा और आंसुओं की बरसात थम जायेगी। प्याज माना कि हर सब्जी को रसदार और लजीज बनाने में अहम हैं मगर प्याज के ऊंचे दाम मुनाफाखोरी और चोरी में भी सहायक हो रहे हैं। हीरों की नगरी सूरत से चोर हीरे नहीं चुरा रहे प्याज ले कर भाग रहे हैं, प्याज से भरे ट्रक जादू की तरह चोर उड़ा ले जाते हैं। आखिर प्याज की बादशाहत का राज क्या है । क्या वह किसी सरकार को चुनाव में करारी हार देने के मकसद से मंहगाई की सीढ़ियां चढ़ता है या केवल हमारी रसोई की रौनक बर्बाद करने के लिये ऐसा करता है। आज यह शोध का विषय है।


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