कथक सम्राट पद्मविभूषण बिरजू महाराज ने किया डॉ. नीलम वर्मा द्वारा रचित खंडकाव्य "अंतरंगिनी"  का लोकार्पण।

नयी दिल्ली स्थित हिंदी भवन सभागार में "विश्व हिंदी साहित्य परिषद" द्वारा कवयित्री, कथक नृत्यांगना एवं हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. नीलम वर्मा द्वारा रचित खंडकाव्य "अंतरंगिनी" का लोकार्पण अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कथक गुरू पद्मविभूषण पं.बिरजू महाराज के करकमलों द्वारा संपन्न हुआ।

 

इस भव्य लोकार्पण एवं काव्य गोष्ठी को संबोधित करते हुए पं.बिरजू महाराज ने कहा कि जीवन में  सुर, ताल, लय, छंद और विचार के रहस्य को जो समझ पाता है वह हमेशा समाज में उत्तरोतर उन्नति कीओर अग्रसर होता है ।


 

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. हरीश नवल की अध्यक्षता में संपन्न इस सारस्वत आयोजन में सान्निध्य प्रदान करने के लिए  विख्यात कवि बालस्वरूप राही उपस्थित थे । 

 

विशिष्ट अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध कवि डॉ.लक्ष्मी शंकर बाजपेई , साहित्यकार डॉ. विवेक गौतम, डॉ. स्नेह सुधा नवल भी मंच पर उपस्थित थे ।


 

विशिष्ट अतिथि के रूप में अपना वक्तव्य देते हुए डॉ. विवेक गौतम ने लोकार्पित कृति की सारगर्भित विवेचना की और "अंतरंगिनी" के समकालीन सरोकारों से श्रोताओं को अवगत कराया। उन्होंने इस तथ्य को स्थापित किया कि निश्छल और अलौकिक प्रेम के माध्यम से स्त्री और पुरुष के प्रगाढ़ प्रेम संबंधों को किस तरह से नीलम वर्मा ने रेखांकित किया है ।


 

डॉ.हरीश नवल ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में नीलम वर्मा की कृति को ऐतिहासिक कृति बताया और उन्होंने इतिहास के कई तथ्यों के माध्यम से यह सिद्ध करने की कोशिश की इस तरह की कृति इससे पूर्व देखने को नहीं मिलती है । 

 

डॉ. नीलम ने अपने उद्बोधन में कहा कि बहुत खोजने पर भी मुझे इस संदर्भ में कोई प्रामाणिकता प्राप्त नहीं हुई है कि कृष्ण युद्ध के पश्चात वृंदावन लौटे हो। प्रामाणिकता का यही अभाव मेरे लिए राधा को कृष्ण की अंतरंगिनी के रूप में प्रतिष्ठित करने का आधार बन गया । मेरी कल्पना में उनके पुनर्मिलन का यह दृश्य किसी कोरे कैनवास की तरह था,  अचित्रित, अवर्णित, अकथ्य  जिस पर मैं अपनी कल्पना से एक संभाव्य आकृति उकेर  सकती थी ।


 

इस शुभ अवसर पर आयोजित काव्य संध्या में  डॉ. अशोक कुमार ज्योति, हर्षवर्धन आर्य, डॉ. रवि शर्मा मधुप, आभा चौधरी, ममता किरण, शशि पांडे ने अपनी कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया ।

 

डॉ. कमल किशोर गोयंका, डॉ. कमल कुमार, डॉ. प्रतिभा जौहरी, इंद्रजीत शर्मा(अमेरिका) , डॉ. निखिल कौशिक (इंग्लैंड), विनोद वर्मा, कमलेश भारतीय, श्रवण अग्रवाल, उषा किरण, जैसे श्रेष्ठ श्रोताओं की उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को एक नयी ऊँचाई और गरिमा प्रदान की।

 

इस कार्यक्रम का सफल और मनोहारी संचालन विश्व हिंदी साहित्य परिषद् के अध्यक्ष डॉ.आशीष कंधवे ने किया।

 

विश्व हिंदी साहित्य परिषद की महासचिव ममता गोयनका ने इस पुस्तक के आवरण को साकार रूप दिया और कार्यक्रम की समयबद्ध व्यवस्था की नीलांजन बनर्जी ने।

टिप्पणियाँ