हिंसा दिल्ली में

देश की राजधानी दिल्ली में इस बार हुई हिंसा को लेकर सभी प्रबुद्ध जनों को गंभीर चिंता हई। कहा जा रहा है कि हिंसा नागरिक संशोधन अधिनियम के कारण हई। अगर देखा जाये तो दिल्ली का इस कानून से कोई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संबंध या प्रभाव नहीं है। इसे लेकर पूर्वी राज्यों में पहले से बनी चिंता के कारण हिंसा की आशंका बनी हुई थी और वहां हिंसा हुई या यूं कहा जाये कि जम कर हिंसा हुई। वहां कर्फ्यू भी लगाना जरूरी समझा गया। मगर किसी ने सोचा भी नहीं था कि विरोध और हिंसा का यह रोग दिल्ली समेत अन्य शहरों तथा विश्वविद्यालयों को भी अपनी चपेट में ले लेगा। ऐसा हुआ तो कैसे हुआ, ऐसा किसी नियोजित और सोची समझी चाल के बिना संभव नहीं हो सकता। दिल्ली की एक यूनिवर्सिटी में हिंसा की शुरुआत के बाद इसका घिनौना असर दो और विश्वविद्यालयों में भी पहुंच गया। इस हिंसा ने एक समुदाय से जुड़ी आबादी की बहुतायत वाले इलाकों में भी अपना असर दिखाया। ऐसी हिंसा का होना दिल्ली की सद्भाव और सौहार्द की सनातन, पुरातन परंपरा के खिलाफ है। इसलिये तमाम रचनात्मक नजरिये वाले व्यक्तियों को इस तरह की हिंसा होने से दुख हुआ। हमारी प्यारी, न्यारी दिल्ली के पास अपने जख्मों को भुला देने का जज्बा और कुव्वत है। इसलिये राजधानी दिल्ली में दो दिन के बाद ही हालात सामान्य होने लगे। ऐसे सजग लोग यह आशा करते हैं कि इस तरह का अंधड़ फिर कभी दिल्ली की ओर नहीं आ सकेगा और न ही यहां जान माल के नुकसान की आहट सुनाई दे। दिल्ली में जब कभी महात्मा गांधी का प्रवास रहा उन्होंने शांति और सद्भाव का संदेश दिया और हम दिल्ली के निवासी इस संदेश को अपने दिलो दिमाग में सहेजे हुये हैं। इसे देखते हुये हमारा यह मानना है कि नागरिकता संशोधन कानून से दिल्ली के जन जीवन और भावी सामाजिक जीवन पर कोई प्रभाव होने वाला नहीं है और न ही इस कानून से किसी की नागरिकता पर की प्रभाव पड़ने वाला है तथी किसी की नागरिकता रद्द नहीं की जा सकती। तो ऐसे में हम क्यों इस कानून को लेकर हो हल्ला करें या कोई बवाल खड़ा करें।  अगर हम कानून के इस सार को सही मायने में समझ लेंगे तो दिल्ली में इस मुद्दे पर किसी प्रकार की हिंसा होने  की गुंजाइश पैदा नहीं होगी। आइये हम सब मिल कर इस सार को समझें और दिलो दिमाग में स्थान दें तो हमारी दिल्ली हिंसा के दुष्प्रभाव का निशाना नहीं बन सकेगी।


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