![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjDbvF5HzAIe8Vcxfv93LeH27Cv68w13X70WXg3x29iNru3dF2LHl_jxt2C0FGRqZoG01NZ_a8FAc5uGmCWM_hGK5VoyWaOMQ5L0e0wgum4vrgeHcUI_t1J0QAIhQodeetCmTxMOGHbkZ45VeHS9IxWdBd_WzkdffDhyphenhyphennNId1wiuEAT6-d91NK1f1TP6c/s320/Yoga%20Day.jpeg)
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दिल्ली ने पिछले आठ दिनों में देखा रैलियों का रेला, जबर्दस्त ठंड में बापू की समाधि पर धरना, विभिन्न इलाकों में प्रदर्शन, मेट्रो के बंद स्टेशन, यातयात जाम, हिंसा का उग्र रूप और पुलिस की मुस्तैदी तथा उसकी सहनशीलता, उदारता। इन सब के अलावा देखा सियासत से जुड़े वर्करों का नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी पर निहित स्वार्थ के लिये चालाकी से बुना गया भ्रमजाल जिसमें फंसते जा रहे नादान लोग गलतफहमी के शिकार हो कर बिना सोचे समझे देश को किसी न किसी तरह नुकसान पहुंचाने की गतिविधियों में अंधों की तरह शामिल होते गये। इतना ही नहीं मजहब के नाम पर देश के भले बुरे की चर्चा करते करते अपने हाथों से देश की संपत्ति को आग के हवाले करने लगे। दिल्ली की ऐसी तस्वीर किसी सजग मानव को तो अच्छी नहीं लगी होगी मगर राजनेता अपनी अपनी पार्टी के नफे नुकसान का आकलन करने लगे। कितने अटपटे और अवांछित थे ये नजारे। कच्ची कॉलोनियों को पक्का करने के लिये आयोजित धन्यवाद रैली एआरसी और नागरिकता संशोधन कानून पर स्पष्टीकरण देने की रैली बन गयी। यह बात अलग है कि लोग भीड़ की तादाद का अंदाजा लगाते रहे। पीएम के भाषण को सुना गया मगर दिल्ली तथा देश के नागरिक, क्या पीएम के संदेश को गंभीरता से लेंगे। देश बचाओ रैली की भी बहुत चर्चा हुई। रैली में चर्चा तो देश की गयी लेकिन चिंता पार्टी और एक परिवार बचाने की ही दिखी। संविधान बचाओ धरने में नेता और एक परिवार के सदस्य आये लेकिन संविधान के स्थान पर सियासत सोचते, समझते रहे।