![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjDbvF5HzAIe8Vcxfv93LeH27Cv68w13X70WXg3x29iNru3dF2LHl_jxt2C0FGRqZoG01NZ_a8FAc5uGmCWM_hGK5VoyWaOMQ5L0e0wgum4vrgeHcUI_t1J0QAIhQodeetCmTxMOGHbkZ45VeHS9IxWdBd_WzkdffDhyphenhyphennNId1wiuEAT6-d91NK1f1TP6c/s320/Yoga%20Day.jpeg)
![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjDbvF5HzAIe8Vcxfv93LeH27Cv68w13X70WXg3x29iNru3dF2LHl_jxt2C0FGRqZoG01NZ_a8FAc5uGmCWM_hGK5VoyWaOMQ5L0e0wgum4vrgeHcUI_t1J0QAIhQodeetCmTxMOGHbkZ45VeHS9IxWdBd_WzkdffDhyphenhyphennNId1wiuEAT6-d91NK1f1TP6c/s320/Yoga%20Day.jpeg)
दिल्ली और एनसीआर के राज्यों में दमघोटू प्रदूषण को लेकर जितनी चिंता देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट को है उतनी न तो राज्य सरकारों, नगर निगमों, अन्य एजेंसियों, नेताओं और सामान्य जनता को है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में जहरीले, काले, पीले, नीले पानी की आपूर्ति से उत्पन्न हाहाकार को भी गंभीरता से लिया है। यह कोर्ट चिंता करती है, सख्त निर्देश भी देती है मगर शासकीय पक्ष और लोगों पर इस अदालत की फटकार का असर चंद दिन ही नजर आता है और इसके बाद वही ढाक के तीन पात वाले हालात हो जाते हैं। इस कोर्ट ने कहा कि प्रदूषण की वजह से दिल्ली और आसपास बने गैस के चैंबर के कारण भावी पीढ़ियों और वर्तमान बचपन की बलि देने के बजाय बम से सबको खत्म कर दो। न होगा सौ मन तेल न राधा नोचेगी। सुप्रीम कोर्ट, एनजीटी और अन्य एजेंसियां भले ही बेहद गंभीर हों मगर एक्शन लेने वाली एजेंसियां मौसमी चोला डाल कर काम करती हैं और ज्यादा से ज्यादा एक सप्ताह चुस्ती दिखाने के बाद वही चलता है वाले ढर्रे पर लौट आती हैं। उन्हें दिखावटी, बनावटी चुस्ती दिखाने की कला आती है। जब दिल्ली के सेहत को नुकसान पहुंचाने के खतरे का आभास सुप्रीम कोर्ट को हो गया तो स्थानीय सरकार को भी इसकी गंभीरता को मान कर ठोस कदम उठाने चाहियें थे मगर वह अपने बचाव में शमशीर और तीर चलाती रही। दूषित पानी से होने वाली बीमारियों, दम तोड़ती यमुना, वायु की गुणवत्ता ने सुप्रीम कोर्ट की नींद चुरा ली है मगर नेताओं को अपने वोट बैंक बढ़ाने, बचाने और अपनी राजनीति चमकाने की एक चिंता सताती रहती है। सरकारी एजेंसियां अदालत को अपनी सक्रियता का सुबूत देने के लिये दिखाती हैं कि इतने लाख रुपये के इतने चालान और जुर्माने किये गये हैं। मगर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि इन एजेंसियों को जनता की जान की कीमत ही नहीं मालूम। उन्हें तो बस तात्कालिक कदम उठा कर कुछ दिन में सब कुछ भूल जाने की पक्की आदत पड़ी हुई है। इस कोर्ट ने कचरे के लचर प्रबंधन और पराली जलाने पर काबू नहीं पाने पर भी सवाल खड़े किये हैं। कई बार इस कोर्ट ने एक निश्चित समय में ठोस कदम उठाने के निर्देश दिये मगर सरकारी एजेंसियों की एक्शन ट्रेन के इंजन अक्सर विश्राम मुद्रा में रहते हैं। इंजन को चुस्ती देने में समय लगता है आखिर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि वह वाछिंत गति में काम करते हुये निर्देश देती है मगर सरकारी एजेंसियां और नेता कोर्ट द्वारा निर्धारित समय सीमा की अनदेखी करने के आदी हो गये हैं और कछुआ चाल में सरकते हैं। कोर्ट के निर्देश क्या फाइलों के लिये होते हैं जिन्हें सुरक्षित रखा जाता है। उम्मीद है कि इस फटकार के बाद कोर्ट के समयबद्ध निर्देशों के अनुरूप एक्शन की गाड़ी आगे बढ़ेगी।