सभी नागरिकों के लिए समान क़ानून की मांग


देश के जाने माने चिंतकों, विचारकों, शिक्षाविदों, कानून विदों एवं  विभिन्न मत पंथों  के प्रतिनिधियों ने एक स्वर से मांग की है कि देश मे सभी नागरिकों के लिए समान क़ानून होना चाहिए।


नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में भारतीय मतदाता संगठन द्वारा आयोजित एक सेमिनार में सभी वक्ताओं और सहभागियों  ने 23 नवंबर को प्रतिवर्ष "समान अधिकार दिवस" के रूप में मनाने और देश मे सभी मत, पंथ, सम्प्रदायों के युवक और युवतियों के विवाह की समान आयु निर्धारित करने पर जोर दिया।  वक्ताओं ने सरकार से यह भी मांग की कि वह विधि आयोग को निर्देश दें कि वह विश्व के विकसित देशों के समान नागरिक कानूनों और भारत मे लागू कानूनों का अध्ययन कर दुनिया का सबसे अच्छे 'इंडियन सिविल कोड' का मसौदा तैयार करें। सेमिनार में चर्चा का विषय था "इंडियन सिविल कोड” “सभी भारतीयों के लिए समान क़ानून।"



 उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. सी. पंत ने कहा कि गोवा मे समान क़ानून दशकों से लागू है फिर भी वहाँ कोई परेशानी नहीं है इसीलिए बदलते वक्त के अनुसार हमें बदलना चाहिए औऱ सम्पूर्ण देश मे इस बात के लिए जनजागरण करना चाहिए कि सभी नागरिक समान क़ानून के पक्ष  मे खड़े हों।


इस अवसर पर राष्ट्रीय सवयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संरक्षक इन्द्रेश कुमार ने कहा कि इस समय एक नया भारत जन्म ले रहा है और पूरे विश्व को नयी दिशा देने की क्षमता भारत के पास है इसीलिए हम स्वयं को अंदरूनी तौर पर एकजुट और शक्ति सम्पन्न करें। उन्होंने कहा कि पिछले दो दशक में उनका करीब 25 लाख मुसलमानों, 8 लाख से अधिक ईसाइयों और लाखों बौद्धों  से सीधा संवाद हुआ है और देश का अधिसंख्य समाज देश मे समान क़ानून का पक्षधर है



विश्व हिन्दू परिषद के कार्याध्यक्ष अलोक कुमार ने कहा की चूँकि समान नागरिक क़ानून का विषय जनसंघ और भाजपा ने उठाया इसीलिए इसे हिन्दू अजेंडा मान लिया जाता है जो गलत है। समान नागरिक क़ानून के लिए देश में वैसी ही सहमति बननी चाहिए जैसी तीन तालक पर बनी है। बेहतर होगा कि समान नागरिक क़ानून की मांग मुस्लिम समाज के बीच से ही आनी चाहिए, साथ ही उन्हीं ने संविधान की धारा 29 एवं 30 पर भी फिर से मंथन करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा की शिक्षा संस्थान खोलने की अनुमति सिर्फ अल्पसंख्यकों को ही नहीं बल्कि पूरे समाज को होनी चाहिये।


पूर्व केंद्रीय मंत्री के.जे. अल्फोंस ने कहा कि हम पहले भारतीय है फिर ईसाई, मुसलमान या हिन्दू, उन्होंने कहा कि जितनी जल्दी हो सके समाज मे समान क़ानून होना चाहिए और हम चाहते हैं कि सरकार इस अध्यादेश को 31 दिसंबर, 2019 से पहले लेकर आये।  



भारत के अतिरिक्त महाधिवक्ता अमन लेखी ने कहा कि समान नागरिक क़ानून सभी देशवासियों के हित में है। उन्होंने इस संबंध में कानूनी प्रावधानों को स्पष्ट किया।


जाने-माने शिक्षाविद और धार्मिक गुरु पवन सिन्हा ने कहा कि देश के विकास के लिए एक समान नागरिक कानून अति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जब लोग धार्मिक पहचान पर अधिक जोर देने लगते हैं तब विकास की गति धीमी पड़ जाती है।


भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की नेता जाकिया सोनम ने कहा कि हम जेंडर जस्टिस और जेंडर इक्वलिटी चाहते हैं इसलिए देश में समान कानून होना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में सभी नागरिकों के लिए एक ही कानून होना चाहिए और जो लोग कानून का दुरुपयोग करने का प्रयास करते हैं उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।



न्यायमूर्ति आई.ए. अंसारी ने कहा सभी विवाहों का पंजीकरण अनिवार्य होना चाहिए। उन्होंने याद दिलाया कि जब देश में हिंदू कोड बिल बना था तब हिंदू समाज की ओर से भी उसका विरोध हुआ था, लेकिन बाद में सभी ने इसके महत्व को स्वीकार किया।


जाने-माने मुस्लिम शिक्षाविद फिरोज बख्त अहमद ने कहा कि देश में सभी नागरिकों के लिए एक कानून और एक झंडा होना चाहिए इसके लिए सभी देशवासियों को जागरूक करने की आवश्यकता, उन्होंने कहा कि इंडियन सिविल कोड बनने से किसी की ना तो परम्पराएं बदलेंगी और और ना ही धार्मिक मान्यताएं, इससे धर्म के दुरुपयोग पर रोक लगेगी। 


इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस जेड.यू. खान ने कहा कि सब को एक सूत्र में बांधने की आवश्यकता है। हमारा कानून हमारे देश की जरूरत और समय के अनुसार होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस संबंध में लोगों के इतने स्वार्थ है कि समस्याएं आएंगी परंतु जो लोग बदलाव चाहते हैं उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सभी के लिए समान कानून हो और सबको समान न्याय मिले।


मानव अधिकार कार्यकर्ता डॉ. ख्वाजा इफतिकार अहमद ने कहा कि यह मानना गलत है कि कानून से सब एक हो जाएंगे, इसीलिए हमें पहले सद्भाव की जरूरत है फिर एकता की। उन्होंने कहा कि एक और एकता में अंतर है सब एक नहीं हो सकते सब में एकता हो सकती है और उसका हमें प्रयास करना चाहिए।


मुंबई के फिल्मकार गजेंद्र चौहान ने कहा कि अगर प्रकृति के नियमों में पुरुष और महिला में कोई भेद नहीं है तो इंसान द्वारा बनाए गए कानून में भेद क्यों है। उन्होंने यह भी कहा कि हम सब में यह भावना होनी चाहिए कि यह मेरा देश है। यह भावना आने के बाद देश में हिंदू-मुस्लिम का भेद समाप्त हो जाएगा और कोई समस्या नहीं रहेगी।


पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान ने कहा कि भारत की अद्वैत की बात करता है इसका अर्थ यह हुआ कि हम स्वीकार करते हैं कि दो धाराएं हैं देश में एकता की संभावना है हम विविधता को सेलिब्रेट करते हैं। 


भारतीय मतदाता संगठन के अध्यक्ष डॉक्टर रिखब चन्द जैन ने सबसे पहले चर्चा के सभी पहलुओं पर विस्तार से जानकारी दी। संगठन के कार्य अध्यक्ष अश्विनी उपाध्याय ने अंत मे एक प्रस्ताव सदन के समक्ष प्रस्तुत किया जिसका सभी ने सर्व सहमति से अनुमोदन किया। 


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