बाबा तुलसी की सत्ता स्थाई है, बाकी राजा अस्थाई है ।

प्रवासी संसार पत्रिका द्वारा आयोजित परिचर्चा 'भारतीय डायसपोरा और तुलसी' विषय पर एक विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया । परिचर्चा में मॉरीशस में रामायण सेंटर के संस्थापक राजेन्द्र अरूण , उनकी विदुषी पत्नी विनोद बाला अरूण , फीजी के प्रसिद्ध लेखक प्रो. सुब्रमणि , वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव , वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह , विद्वान नारायण कुमार आदि ने भाग लिया । 


     कार्यक्रम का शुभारंभ मानस चौपाइयों के गायन से हुआ। यह गायन कथक केंद्र के नागेश्वर लाल एवं उनके सहयोगी शर्मा जी ने किया। साथ ही विश्व के अनेक देशों में अपनी प्रस्तुति दे चुके राजेश पांडेय जी ने राम भजन गा कर सब को मंत्रमुग्ध कर दिया। 

इस अवसर पर भारतेंदु मिश्र द्वारा संपादित पुस्तक अवधी कहानियों के संग्रह ' कथा किहानी'  का लोकार्पण भी हुआ। डॉ. मिश्र ने अवधी गद्य साहित्य पर अपने विचार प्रकट किए। 



इस अवसर पर अनेक विद्वानों ने अपने विचार प्रकट किए। विनोद बाला अरूण ने भारतीय विश्वविद्यालयों में तुलसी की उपेक्षा पर दुख प्रकट किया । अनिल जोशी ने फीजी के अनुभव के संदर्भ में रामायण की सामाजिकता को रेखांकित किया । लक्ष्मीशंकर बाजपेयी जी ने कहा तुलसी ने शैवों और वैष्णवों को जोड़ने में महत्वपूर्ण योगदान दिया । जया वर्मा ने रामायण को बच्चों तक ले जाने पर ज़ोर दिया। वरिष्ठ कवियत्री डॉ. रमा सिंह ने लेखक के रूप में तुलसी के महत्व पर प्रकाश डाला ।

 

प्रख्यात पत्रकार शेष नारायण सिंह ने तुलसी के समकालीन अकबर और रहीम को लेकर मानस और तुलसी के प्रसंगों पर प्रकाश डाला। अनेक चौपाईयों को उद्धृत करते हुए विनोदबाला अरुण जी की शंका का उत्तर देते हुए कहा कि बाबा तुलसी की सत्ता स्थाई है, बाकी राजाओ की सत्ता आनी-जानी है। राहुल देव जी ने युवा पीढ़ी तक मानस को पहुँचाने के लिए नेटफ्लिक्स जैसे साधनों का इस्तेमाल पर ज़ोर दिया । उन्होंने गिरमिटिया देशों में हिंदी भाषा के क्षरण पर सबका ध्यान आकृष्ट किया । नारायण कुमार ने तुलसी के वैश्विक महत्व पर प्रकाश डाला, उन्होंने गांधी, तुलसी और डायस्पोरा को लेकर अपने विचार रखें।

गिरमिटिया देशों  के सामाजिक , सांस्कृतिक , धार्मिक जीवन में रामायण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । इस संदर्भ में मॉरीशस के राजेन्द्र अरूण  और फीजी के प्रो. सुब्रमणि को सुनना बड़ा रोचक और महत्वपूर्ण था । राजेन्द्र अरूण जी ने रामायण की भक्तिपरक और ज्ञानपरक व्याख्या की और बताया कि किस प्रकार मॉरीशस में संसद के द्वारा रामायण एक्ट पास कर रामायण सेंटर स्थापित किया गया था। संसद ने मूल प्रस्ताव में संशोधन कर सामाजिक , सांस्कृतिक के साथ आध्यात्मिक विकास को भी जोड़ा और रामायण को केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं अपितु सभी समुदायों के लिए महत्वपूर्ण बताया । प्रो.सुब्रमणि का भाषण बहुत दिलचस्प था । उन्होंने मज़ेदार अंदाज में बताया कि बचपन मे जब एक गाँव से दूसरे गाँव रामायण ले जाते थे तो बच्चा होने के कारण उन्हीं के कंधे पर रख दिया जाता था और वे सोचते थे कि बड़ा होकर मैं भी एक किताब लिखूँगा वो रामायण जैसी भारी हो । उन्होंने जिस बात पर विशेष बल दिया वह यह थी कि तुलसी लेखकों के लिए आदर्श थे । शब्दों को कैसे कविता में पिरोया जाता है कोई उनसे सीखे। कैसे कथा विकसित की जाती है, कैसे एक कथा से दूसरी कथा में प्रवेश किया जाता है। तुलसी लेखन के महानायक थे । 

कार्यक्रम का जीवंत संचालन पत्रिका के सम्पादक डॉ. राकेश पाण्डेय ने किया।

इस अवसर पर हिंदी जगत के अनेक विद्वान उपस्थित रहे जिनमें वरिष्ठ लेखक एवं विश्व हिंदी सचिवालय के पूर्व महासचिव डॉ. राजेंद्र मिश्र, बी.एल. गौड़, ममता किरण, नूतन पांडेय, दीपक पाण्डेय, राजमणि, सुनील श्रीवास्तव, शिवकुमार बिलग्रामी, डॉ.विवेक गौतम, शिव सचदेवा, प्रदीप जैन, डॉ. वीणा मित्तल और सुषमा सिंह आदि प्रमुख थे।

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