देश की राजधानी दिल्ली में उस समय अद्भुत स्थिति बन गई जब न्याय प्रक्रिया से जुड़े दो स्तंभ कर्त्तव्य और शर्म को जानबूझ कर दरकिनार करते हुये एक दूसरे के समक्ष डट कर आमने सामने खड़े दिखायी दिये। ऐसे कुछ दिन दिल्ली में परेशानी, अव्यवस्था और बदनामी के नाम लिखे गये। अनुशासन के सरकारी बंधन में लक्ष्मण रेखा का पालन करने वाले पुलिस के जवान और कुछ अधिकारी सभी जिम्मेदारियों को ताक पर रख के एक नाटक के पात्र बन राजधानी में निराले अभिनय में जुटे सिपाही सभी को अखरने लगे। दूसरी ओर कानून को अमलीजामा पहनाने में मददगार काले कोट डाल कर अदालतों में बहस करने वाले वकील अपनी दलील के सरमाये को सड़क के हवाले कर हिंसा के अवांछित खेल के अनचाहे खिलाड़ी बने दिखे। दोनों समझदार पक्ष एक मामूली बात पर आपस में इस तरह उलझे कि उनकी जिद और नासमझी की गैरवाजिब तूती सारे देश में सुनाई देने लगी। खाकी और काले कोट का यह संघर्ष इतना जोरदार और दमदार हो गया कि प्रशासन को चिंता सताने लगी कि किस तरह इस मुसीबत से निजात पायी जाये। एक अदालत में लॉकरूम के सामने कार की पार्किंग से उत्पन्न विवाद ने तूफान का रूप ले लिया और रक्त रंजित हिंसा में लीन दोनों पक्ष जनता की आंख की किरकरी बन गये। ऐसा लगा कि एक दिन खाकी का दबदबा रहा तो अगले दिन काले कोट ने बाजी मार ली। अदालतों में कामकाज ठप हुआ और सामान्यजनों का न्यायालय परिसर में प्रवेश करना असंभव हो गया। इन दोनों पक्षों के टकराव से न केवल राजधानी का मजाक बना अपितु न्याय प्रक्रिया बंधक बनी दिखायी दी और दोनों पक्षों ने एक दूसरे के खिलाफ मामले दर्ज करवाये। हद तो उस समय हुई जब हजारों की तादाद में खाकी, पुलिस मुख्यालय के सामने एकत्र हो कर अपनी सुरक्षी की गारंटी की मांग करने लगी और भरोसा दिलाये जाने के बावजूद वहां से टस से मस नहीं हुई । पुलिय कमिश्नर ने हड़बड़ी में खाकी की सारी मांगें मान लीं मगर संकट की इस घड़ी में पुलिस को पूर्व आईपीएस अधिकारी क्रेन बेदी के नाम से मशहूर महिला की याद आयी। कहते हैं कि दुख में न जाने किस किस की याद आती है।
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