![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjDbvF5HzAIe8Vcxfv93LeH27Cv68w13X70WXg3x29iNru3dF2LHl_jxt2C0FGRqZoG01NZ_a8FAc5uGmCWM_hGK5VoyWaOMQ5L0e0wgum4vrgeHcUI_t1J0QAIhQodeetCmTxMOGHbkZ45VeHS9IxWdBd_WzkdffDhyphenhyphennNId1wiuEAT6-d91NK1f1TP6c/s320/Yoga%20Day.jpeg)
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दरियागंज के फुटपाथ पर 54 वर्ष से लगने वाला बुक बाज़ार इतना ज़्यादा मकबूल और मशहूर था कि इसके बंद होने पर दिल्ली और एनसीआर के पुस्तक प्रेमियों की सांसें अटक गई, राहें भटक गईं और लगा कि उन्हें बंद हुए बाज़ार में मिल रहीं बुकस जैसी किताबें कहीं नहीं मिल सकेंगी । 2009 और 2019 में इस बाज़ार की चहल पहल, धमक और रौनक सब कुछ वीरनगी में समा गयी। दो बार इस बाज़ार की गुमनाम मौत हुई या कत्ल हुआ, इसका असर उन पुस्तक प्रेमियों पर पड़ा जो संडे के दिन अपने थैले लेकर आया करते थे और चंद रुपयों में इल्म का ख़जाना भरकर ले जाया करते थे। जो किताब दिल्ली और आसपास कहीं नहीं मिला करती थी उसका दरियागंज फुटपाथ बाज़ार में मिलना तय था। दो बार बुक लवर्स को इस बाज़ार के कत्ल होने पर मातमपुर्सी करने वालों की सहानुभुति से कुछ न कुछ राहत मिली, मगर हर मुद्दे पर कथित रूप से सियासत करने वाले सजग नेताओं को इस हादसे पर सोचने की जरुरत महसूस नहीं हुई। सब कहते हैं कि कुर्सी के दीवाने, तिकड़मबाज़, नाटकबाज़ नेता तो केवल वही मुद्दा उठाते हैं जिससे उन्हें थोक में वोटों की फसल काटने का मौका मिले। आखिर बुकलवर्स की तादाद ही कितनी है जो सियासतदां उनके गम और दर्द को समझने की कोशिश करें। बहरहाल इस बाज़ार को एक नया ठिकाना मिला है जो दरियागंज के फुटपाथ से दूर नहीं । अच्छी बात है कि अब यह बाज़ार संडे को आसिफ अली रोड पर डिलाइट सिनेमा के सामने महिला हाट में लगना शुरु हो रहा है। महिला हाट की कल्पना में खोये बुक लवर्स की किताबों की तलाश के क्या कहने। यह बात नहीं है कि वहां महिलाएं नहीं आएंगी मगर मर्द बुक लवर्स का महिला हाट में महिलाओं को देखते-देखते नायाब किताबों की तलाश का अहसास भी कुछ मीठा और अनूठा होगा। नये स्थान पर भी संडे किताब बाजार उसी तरह बुक लवर्स को आकर्षित करेगा जैसे दरियागंज का ऐतिहासिक बाजार हजारों की तादाद में बुक लवर्स को खींच कर लाया करता था। किताबें हैं तो कल्चर है और उम्मीदें हैं।