भारी चालान

दिल्ली समेत देश के ज्यादातर भागों में पहली सितंबर से नया मोटर वाहन कानून लागू हो गया है जिससे यातायात नियमों के उल्लंघन पर पहले से 5 और 10 गुना जुर्माना लगाने की जोरदार शुरुआत हो गयी है। इस कारण बहुत लोग परेशान हैं और कह रहे हैं कि सरकार को नियमों के उल्लंघन को छोटे से रोग के लिये इतना बड़ा इंजेक्शन लगाने की क्या जरूरत आन पड़ी थी। सवाल यह नहीं है कि मर्ज छोटा है या बड़ा बल्कि मुद्दा यह है कि यातायात नियमों का पालन नहीं करने से हर साल देश में हजारों नहीं लाखों मौतें होती हैं। सरकार के लिये जुर्माने की राशि अहम नहीं है बल्कि लोगों की जान बचाना अधिक महत्वपूर्ण होता है।
अगर पूरे साल सड़कों पर यातायात पुलिस के सिपाही बहुत बड़ी तादाद में तैनात रहेगे तो नियमों का पालन नहीं करने वालों की मुसीबत बढ़ जायेगी। और अगर तीन साल तक पूरी सख्ती बरतें तो लोगों की आदत बदली जा सकेगी। पिछले दिनों में अक्सर यह देखने को मिला कि यातायत पुलिस के कारिन्दे बिना हेल्मेट के दुपहिया वाहन चलाने, सीट बेल्ट नहीं लगाने, वाहन चलाते समय मोबाइल यानी कनबतिया पर बतियाने और मुंह से धुंऐं के छर्रे छोड़ने को बड़ा अपराध नहीं मान रहे। इसका कारण क्या यह हो सकता कि पुलिस बिगड़ैल, लफंगों और धन के नशे में चूर नौजवानों और कथित धनपशुओं की गलतियों की जानबूझ कर अनदेखी करती है। भले ही क्रासिंग पर या रेडलाइट पर अगर चार या इससे ज्यादा ट्रेफिक पुलिस के जवान तैनात हों तब भी वे ऐसे उल्लंघन पर चालान नहीं करते। ये भी देखने में आया है कि दुपहिये पर अगर कोई युवक किसी लड़की को बैठा कर जा रहा हो तो वो दोनों हेल्मेट नहीं डालेंगे और युवक दोनों की जान को हथेली पर रखते हुये तेज मारक गति से जिग जैग तरीके से वाहन चलाता रहेगा। कम से कम ऐसे मामलों में तो यातायात पुलिस को उनका पीछा कर के भारी से भी अधिक चालान करना चाहिये। नये नियमों का असर भी दिखायी दिया है। लोग रेड लाइट जंप नहीं कर रहे और अपने वाहन रेड लाइट पर सफेद लाइनों से पीछे रोकते हैं। लोग पेट्रोल पंपों पर प्रदूषण जांच कराने के लिये उमड़ रहे हैं और वहां लगभग किलोमीटर जितनी लाइनें लगी हैं। हमारा मानना है कि नये नियमों का होगा असर धीरे धीरे।


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