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कोई चुनाव नजदीक आने लगता है तो आरोपों का मौसम दस्तक देता है। दिल्ली विधान सभा चुनाव यूं तो 2020 जनवरी में कराये जाने चाहियें मगर सियासी हलकों में चर्चा गर्म है कि चुनाव इसी साल अक्तूबर महीने में कराये जा सकते हैं। दिल्ली में सत्तारूढ़ पार्टी इस आशंका को हालांकि निराधार बता रही है मगर कई राज्यों में विधान सभा का कार्यकाल समाप्त होने से पहले कई बार चुनाव करवाये गये हैं। चुनाव की आहट के बीच भगवा दल ने ईमानदार समझे जाने वाली सरकार पर ऐसा आरोप लगा दिया है जिसका जवाब देने के लिये सरकार को जूझना पड़ सकता है। कहा जा रहा है कि यह आरोप आर टी आई के तहत मिली जानकारी पर आधारित है। स्कूलों में 12 हजार से अधिक कमरे बनाने के लिये लगभग 2900 करोड़ रु का खर्च बताने पर भगवा दल ने दो हजार करोड़ रु के घोटाले का मकसद बताया है। सैंकड़ों कमरे बन गये हैं। स्कूलों में कमरे बनवाना दिल्ली सरकार की मजबूरी है। इसका कारण है कि दिल्ली में अस्पतालों और स्कूलों के लिये जमीन प्राप्त करना टेढ़ी खीर है। इसलिये वह चुनावी वायदे के अनुसार स्कूलों का निर्माण नहीं करवा सकती। एक आरोप के बाद दिल्ली की नयी पार्टी जवाब में भगवा दल पर कई आरोप लगायेगी और आरोपों की बरसात में चुनावी माहौल गीला होने के बजाय नफरत से सराबोर हो कर जहरीला हो सकता है। आरोप तो आरोप होते हैं और ये टकराव के बीज बोते हैं। इसलिये आरोपों का जवाब देने के लिये सोच समझ कर सयंमित तरीके से आरोपों के भंवर जाल में कूदना होता है। आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला शुरु होता है तो कई बार हालात बेकाबू होने की आशंका बन सकती है। नयी पार्टी अब सियासत में अनाड़ी नहीं रही और वह आरोप का माकूल जवाब देगी मगर कई बार जवाब देने में जल्दबाजी नहीं करने से फायदा मिल सकता है और आरोप का असर अपने आप बेअसर हो जाता है। एक वाक्या याद आ रहा है एक राज्य के विधान सभा चुनाव में एक प्रत्याशी ने दूसरे उम्मीदवार पर आरोप लगाया कि उसके दादा ने खुले में शौच करते समय एक शरीफ आदमी का पानी का लौटा चुराया था। जिस प्रत्याशी के दिवंगत दादा पर आरोप लगाया गया वह पूरे प्रचार के दौरान सफाई देता रहा और वह मजबूत प्रत्याशी होने के बावजूद चुनाव हार गया।