पांच साल बाद बतौर शिक्षा मंत्री मैं हैप्पीनेस, आन्ट्रप्रनर्शिप माइंडसेट पर बात करूंगा : मनीष सिसोदिया

-    स्कूल प्रिंसिपल्स का तीन दिवसीय एडमिनिस्ट्रेटिव कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम विज्ञान भवन में शुरू   


-    दिल्ली के सरकारी स्कूलों के सभी प्रिंसिपल्स इस प्रोग्राम में हिस्सा ले रहे हैं


-    शिक्षा को लेकर असली काम तो अब शुरू हुआ है मनीष सिसोदिया



“पिछले पांच साल में हम माइनस से ग्राउंड लेवल पर आए हैं। अब हमें बिल्डिंग बनानी है। पांच साल बाद जब मैं दोबारा आपके सामने शिक्षा मंत्री के रूप में यहां बात करूंगा, तब मैं इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षकों की उपलब्धता इत्यादि के बारे में बात नहीं करूंगा। उस वक्त ये बातें गैर-जरूरी साबित हो चुकी होंगी। इस इमारत की नींव तैयार हो चुकी है, पांच साल बाद हम इमारत के बाकी हिस्सों की बात करेंगे। पांच साल बाद हम हैप्पीनेस, आन्ट्रप्रनर्शिप माइंडसेट इत्यादि की बात करेंगे।“ दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने एक कार्यक्रम में दिल्ली के सरकारी स्कूलों के प्रिंसिपल्स को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं। दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग ने सभी सरकारी स्कूलों के प्रिंसिपल्स के लिए तीन दिवसीय एडमिनिस्ट्रेटिव कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम शुरू किया है। इसका उद्घाटन 20 जून, गुरुवार को दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने किया।


हैप्पीनेस कैरिकुलम के बाद, आन्ट्रप्रनर्शिप माइंडसेट कैरिकुलम सरकार का सबसे बड़ा रिफॉर्म है। इस बारे में बात करते हुए शिक्षा मंत्री ने कहा, “मैं जबआन्ट्रप्रनर्शिप की बात कर रहा हूं तो इसका मतलब आन्ट्रप्रनर्शिप  स्किल्स मसलन, बिजनेस डेवलपमेंट, कैपिटल, मार्केटिंग इत्यादि से नहीं है, यहां मेरा आशयआन्ट्रप्रनर्शिप माइंडसेट का है। पूरी दुनिया में 9वीं से लेकर 12वीं तक के स्टूडेंट्स के लिए इतने बड़े पैमाने पर ऐसा कोई प्रोजेक्ट नहीं चलाया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट के नतीजों के बारे में अगर मैं एक लाइन में कहूं तो ये है – हमारे बच्चे नौकरियों के पीछे न भागें, नौकरियां हमारे बच्चों के पीछे-पीछे आएं। चार साल बाद, अगर हमारे बच्चे नौकरियों के पीछे भाग रहे होंगे तो समझ लीजिए कि हम अपने मकसद में फेल हो गये।“


मनीष सिसोदिया ने ये भी कहा, “हम सभी अखबार पढ़ते हैं। अखबारों की हेडलाइंस पढ़कर दुखी भी होते हैं। मैं चाहता हूं कि हम लोग अखबारों की हेडलाइंस बदलने वाले लोग बनें। केवल हम लोग ही अखबारों की हेडलाइंस बदलने में सक्षम हैं। भारतीय सेना इन हेडलाइंस पर सर्जिकल स्ट्राइक करने में सक्षम नहीं है। वे हमारे देश की रक्षा करने में सक्षम हैं लेकिन बतौर एजुकेटर्स हम सब अपने समाज का भविष्य बदलने में सक्षम हैं। हम दिल्ली के शिक्षक, एजुकेशन डिपार्टमेंट संकल्प लेते हैं कि अखबारों की जो हेडलाइंस हमें परेशान करती हैं, शिक्षा के माध्यम से उन हेडलाइंस को 5 साल में बदलकर दिखाएंगे।“


उप-मुख्यमंत्री ने कहा, “ये तो शुरुआत है। ये कोई अंत नहीं है। शिक्षा को लेकर असली काम तो अब शुरू हुआ है। इंफ्रास्ट्रक्चर, ट्रेनिंग, बजट ये सारी बातें तो अप्रासंगिक हैं। हमारे सरकारी स्कूलों में कितने स्वीमिंग पूल बन गये हैं, उनकी संख्या का उतना मतलब नहीं रहेगा। पांच साल बाद हमें इस बात पर चर्चा करनी चाहिए किस तरह हमारे एजुकेशन सिस्टम ने समाज में महिलाओं के प्रति हिंसा, उनके प्रति व्यवहार में कितना बदलाव लेकर आ पाए। हमें इस बात पर चर्चा करनी चाहिए कि शिक्षा के माध्यम से हमने जात-पात के झगड़ों को कमजोर करने में कितना योगदान दिया है। क्या हम अपने बच्चों को रोजगार देने में सक्षम हो पाए हैं, हमें इस पर बात करने की जरूरत होगी।“


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