किस्मत

क्या दिल्ली का मुकद्दर बदलने वाला है या यूं ही चुनाव से पहले की राजनीतिक तीरअंदाजी के खुल्ले खेल की धमाकेदार शुरुआत हो गयी है। यह सही है कि ऐसी तीरअंदाजी से लोगों की उम्मीदें बढ़ जाती है मगर कभी कभी चुनाव परिणाम के बाद आशाओं की फसल दबी कुचली दिखायी देती है। दिल्ली में इन दिनों आशाओं के बीज खेतों में नहीं, सजे धजे समारोहों में लगाये जा रहे हैं लेकिन यह नहीं मालूम कि इन बीजों को पानी देने की  कोई चिंता करेगा कि नहीं। अगर दिल्ली की सबसे नयी पार्टी को 2017 के निगम चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में संतोषजनक जीत मिलती तो शायद इस पार्टी की सरकार को इतनी तेजी  और इतनी गंभीरता से तीरअंदाजी या बैटिंग करने की जरुरत नहीं होती। पिछले दो चुनावों के नतीजों में इस पार्टी को खुश होने का कोई कारण नहीं मिला इसलिये इसे एक के बाद एक ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल करना आवश्यक महसूस हुआ। अगर पुराना रिकार्ड देखें तो मालूम होगा कि पार्टी का मुफ्त पानी और सस्ती बिजली का तीर ठीक निशाने पर लगा था। यह बात अलग है कि तब लोग इस पार्टी के दीवाने थे लेकिन अब लोगों में वैसी दीवानगी दिखायी नहीं देती मगर पार्टी के संयोजक और दिल्ली के वजीर- ए आला को अपनी कुव्वत, ताकत, कला और जादू पर भरोसा है। इसलिये 48 करोड़ लीटर पानी को ट्रीट कर हर घर में पाइप से पानी पहुंचाने, कच्ची कॉलोनियों के 50 लाख से अधिक निवासियों के सिर पर लटकी तलवार पर वार कर उनका भय समाप्त करने, इस साल के अंत तक बड़ी तादाद में इलेक्ट्रिक और प्रवेश द्वार पर हाइड्रालिक लिफ्ट वाली बसें लाने, चंद महीनों में डेढ़ लाख सीसीटीवी कैमरे लगाने और आधी दुनिया का समर्थन पक्का करने के लिये उन्हें दिल्ली और बाहर एनसीआर में महिलाओं को डीटीसी और मेट्रो में मुफ्त बिल्र्कुल मुफ्त बेधड़क सफर कराने के ब्रह्मास्त्र  पर संयोजक तथा उनके साथियों को पूरा भरोसा है। इसके अलावा उनके पास अपना एक वोट बैंक है जो बिखरना कठिन लगता है। ब्रह्मास्त्र से बीस तीस फीसद असर हो गया तो बात बन सकती है। हो सकता है कि मतदाता यह सवाल करें कि चार साल 6 महीने ऐसे काम क्यों याद नहीं आये। सवाल करना मतदाता का वैसा अधिकार है जैसा वोट डालना। सबसे नयी पार्टी की इस स्पीड से भगवा दल को चिंता नहीं हो रही क्योंकि  वे मानते हैं कि उनके पास एक ऐसा नाम है जो कुछ समय में महासागर को पार करवाने का इंतजाम कर सकता है। उधर देश की सबसे पुरानी पार्टी अभी घर और कुनबे को चुस्त, दुरुस्त करने में लगी है। ऐसे में 2020 के विधान सभा चुनाव के नतीजे का कयास लगाना जल्दबाजी होगी।


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