

भारत के सभी राज्यों में राजस्थान का अपना विशिष्ट महत्व है | जैसा कि हम सब जानते हैं कि सौराष्ट्र, महाराष्ट्र, राजस्थान – आदि नामों के द्वारा इन राज्यों की खूबियों को सहजता से समझा जा सकता है | वीरों, शूरों, धीरों, सन्तों, भक्तों, कलाकारों, विद्वानों तथा कवियों की यह धरती सदा आनेवाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायिनी रही है |
इसी कड़ी में वर्ष २०१९ के ७, ८ और ९ फरवरी को जयपुर में सम्पन्न ‘राष्ट्रिय संस्कृत सम्मलेन’ सभी संस्कृतानुरागियों और संस्कृत-विद्या के समुपासकों के लिए स्फूर्तिदायी रहा | आशा की जा सकती है कि सुख्यात संस्कृत-समाराधक पंडित मोतीलाल जोशी जी की पुण्यस्मृति में सर्वतोभावेन उनके सुपुत्र डॉ.राजकुमार जोशी द्वारा की गई इस पहल से, राजस्थान में पिछले कई वर्षों से मन्दगति से चल रहे संस्कृत-कार्यों को अवश्यमेव गति, संगति और प्रगति मिलेगी |
तो आईये देखते हैं ... इस सम्मेलन का आँखों देखा हाल | जी...! किसी भी गम्भीर आयोजन के लिए यह कह देना कि सम्मेलन बहुत अच्छा था, ठीक-ठीक था या चलो, हो गया ... वगैरह सामान्य प्रतिक्रियाएँ तो मिलती रहती हैं लेकिन मैं पूरी प्रामाणिकता और सत्यानुभूति के साथ कहना चाहूँगा कि वास्तव में यह संस्कृत सम्मेलन अनुपम था और उत्साह से भरा हुआ था | इसके लिए संस्कृत-प्रेमियों की ओर से श्रीराजकुमार जोशी जी को हार्दिक अभिनन्दन और खूब-खूब बधाई | परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि उनको स्वस्थता-पूर्ण दीर्घायुष्य मिलें और इसी प्रकार से संस्कृत-संस्कृति के कार्य करते रहें |
इस बहु-आयामी सम्मेलन के अनेक पक्ष हैं जिनकी हम क्रमशः समीक्षा करने का प्रयास करते हैं |