नीम हकीम

देश की राजधानी दिल्ली में एक अनुमान के अनुसार 30 हजार झोलाछाप डाक्टर यानि नीम हकीम हैं। ये नीम हकीम गांवोंपुनर्वास बस्तियोंझुग्गी झोपड़ी इलाकों और तो और संपन्न काॅलोनियों में भी अपनी नोट छापने की मशीन चला रहे हंै क्योंकि दिल्ली के लोग भले ही कितने गरीब हों वे अपने उपचार के लिए 100-200 रु दे ही सकते है। नीम हकीम का मतलब हैवह डाॅक्टर जिसने कभी इस क्षेत्र में शिक्षा ग्रहण नहीं की होकिसी डाॅक्टर का कभी कंपाउंडर रहा हो या फिर उसने आयुर्वेद या यूनानी पद्धति की पढ़ाई की हो मगर वह धड़ल्ले से प्रेक्टिस कर रहा हो। ऐसे नीम हकीम खुलेआम अंग्रेजी दवाएं देते हंैइंजेक्शन लगाते है,ं कुछ आसान और कुछ मुश्किल आॅपरेशन भी कर लेते हंै। इनता ही नहीं वे नाम के आगे मेडिकल क्षेत्र से जुड़े विशेषण लगाते हंै जैसे कि स्पेश्लिस्ट फिजिशियनहड्डी रोग विशेषज्ञ आदि आदि। कई ऐसे झोलाछाप तो शर्तियां लड़का होने या संतान होने की भी दवाएं देते हैं भले ही उन्हंे यह नहीं मालूम होता कि वह दवा में क्या परोस रहे हंै। उनकी इस तरह की कारस्तानी से कई लोगों के प्राण पखेरू उड़ जाते हैं। ऐसे होने पर झोलाछाप कुछ दिन के लिए अपनी दुकान बंद करके गायब हो जाते हैं या दुकान उठा कर किसी और कस्बे में चले जाते हैं। बहरहाल उनका धंधा चलता रहता है और वह मरीजों की जान खतरे में डालकर मोटी कमाई करते हैं। यह मानवता के प्रति अपराध है। अगर राजधानी दिल्ली में यह आलम है तो दूरदराज के इलाकोंअन्य पिछड़े राज्यों और अंधविश्वासी क्षेत्रों में तो ऐसे नीम हकीम न जाने एक साल में कितने लोगों का यमराज को तोहफा दे देते है। कई झोलाछाप हड्डी विशेषज्ञ अपने मरीजों का उपचार करते हुए न जाने किस तेल से मालिश करते है या फिर टूटी हड्डीफिसली हड्डी को जोड़ने के लिए मोड़ मरोड कर हड्डी का कचूमर निकालते हंै। क्या ऐसे नीम हकीमों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। क्या ऐसे लोगों को जिन्हें अंग्रेजी दवाओें के नामदवाओं के कंपोजीशन और उसे होने वाले फायदे नुकसान तथा किस मर्ज के लिए दवा बनी हैइन सबकी जानकारी नहीं होती फिर भी वह ऐसे दवाओं का प्रयोग अपने मरीजों पर करते हंै और उन्हें जीवनभर के लिए नाकारा बना देते हैं।


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