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मीडिया लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ है। चुनाव लोकतन्त्र का उत्सव है। चुनाव के परिपेक्ष में मीडिया की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। प्रिन्ट मीडिया अखबार / न्यूज पेपर, इलेक्ट्रोनिक मीडिया टी.वी. / रेडियो, सोशल मीडिया सभी अपने-अपने तरह से मतदाताओं को सही जानकारी प्रत्याशियों एवं पार्टियों के बारे में दे सकते हैं।
मीडिया का दायित्व है कि वे निष्पक्षता पर टिके रहे। पेड न्यूज और फेक न्यूज से बचे। भ्रम और अफवाहें पैदा न करें। तथ्यों को जाँच और सत्यापन के बाद ही प्रकाश में लाये। कई चैनल और समाचार पत्र सभी प्रत्याशियों को एक साथ अपना दृष्टिकोंण रखने के लिए कार्यक्रम आयोजित करते है। आजकल जनता के साथ चुनाव में खडे़ प्रत्याशियों का संवाद प्रत्येक चुनाव क्षेत्र में करवाये जा रहे हैं। चुनाव की व्यवस्था, चुनाव में आचार संहिता का उल्लंघन, बंगाई, जाली वोट इत्यादि मसलों पर मीडिया काफी कुछ अपनी भूमिका निभा सकती है।
प्रत्येक मतदाता को वोट देने के लिए जागृत करें। उन्हें सोच-समझ कर वोट देने के लिए प्रेरित करें। मतदाता वोट न बेचे इसके लिए उन्हें समझायें। वोट अपराधी एवं स्वार्थी लोगों को न दें। झूठे घोषणा पत्र पर ध्यान न दें। हिंसात्मक सोच और गतिविधियों में संलिप्त, दहशतगर्द और टेररिस्ट प्रवृति के लोगों को वोट न दें। शिक्षात्मक दृष्टिकोंण और प्रबुद्ध लोगों के विचार इन विषयों पर जनता के समकक्ष अवश्य रखें। चुनाव के समय पोलिंग प्रतिशत बढ़ानें के लिए नागरिक संस्थान अपने क्षेत्रों में रैली निकालते हैं एवं नुक्कड़ सभाएं करते हैं। मतदाता मित्र का रोल निभाते है। ऐसे विषय पब्लिक के सामने लायें और इन विषयों पर पूरी तरह से कवरेज दें।
मीडिया को अक्टूबर महीने में सुप्रीम कोर्ट ने अपराधी रिकॉर्ड वाले प्रत्याशियों के सम्बन्ध में एक बड़ा दायित्व दिया गया है। 25 सितम्बर 2019 के अनुसार प्रत्येक प्रतिनिधि जिसका आपराधिक रिकॉर्ड है वह उसे तीन अखबारों में निर्देशानुसार छपवायें और ऑडियो-विडियों मीडिया ट्रांसमिट में करवायें। भारतीय मतदाता संगठन स्थापना से अबतक चार साल में निरन्तर आपराधिक प्रवृति के लोगों को राजनीति में प्रवेश न मिलें, इसके लिए प्रयासरत् रही है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि सरकार अपराधी पृष्ठभूमि के लोगों को संसद, विधानसभा एवं लोकतान्त्रिक फोर्म में आने से रोकने के लिए कानून लाये। मतदाता संगठन ने सरकार को कई बार चेताया है लेकिन सरकार इस बारे में कुछ भी कहने से बच रही है। राजनैतिक पार्टियां और अधिकारी वर्ग एवं चुनाव आयोग भी इससे बच रहा है। पाँच राज्यों के पिछले चुनाव में सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की अनुपालना कहीं भी नहीं हुई है।
इसके लिए मीडिया से निवेदन है कि सम्बन्धित पार्टी के कर्ताधर्ता, अध्यक्ष, सचिव, प्रवक्ता वर्ग से बात करें और यह जाने कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की अनुपालना में क्या तकलीफ है। उन पर इसे अनुपालना के लिए दबाव डाले। आपराधिक प्रवृति के प्रत्याशियों का सारा रिकॉर्ड और प्रत्येक अपराध के बारे में विशिष्ठ सही जानकारी जनता तक पहुंचाये ताकि जनता आपराधिक प्रवृति के लोगों को नकारे।
जब कोई नागरिक या भारत सरकार या कोई संस्थान अपराधी व्यक्ति को ड्राइवर / चपरासी / स्वीपर या घर में नौकर भी नहीं रखना चाहते हैं तो राजनैतिक पार्टियां जघन्य अपराधी, हत्या, रेप, घोटालें करने वाले अपराधी व्यक्तियों को माननीय संसद सदस्य कैसे बना सकती हैं? क्या यह जनता के प्रति अन्याय नहीं है? इसे रोकें। पार्टियां इससे बचे।
मीडिया से निवेदन है कि वह सभी पार्टी के कार्यकर्ता-धर्ता, चुनाव समीतियों के अध्यक्ष, सदस्यों से इन्टरव्यू लें और पूछें कि आपराधिक प्रवृति के लोगों को क्यों चुनाव में टिकट दें रहे हैं? भारतीय मतदाता संगठन ने ऐसे आपराधिक प्रवृति के लोगों को टिकट नहीं देने से परहेज करने के लिए राजनैतिक पार्टियों से निवेदन किया हैं। अगर वह पार्टियां अपने आप इस विषय पर कुछ नहीं करती है तो भारत के मतदाताओं को चाहिए कि ऐसे लोगों को नकारें इसके लिए मीडिया जन समुदाय / मतदाताओं को प्रेरित करें।
भारतीय मतदाता संगठन मतदाताओं की तरफ से राजनैतिक पार्टियों को इस अवसर पर ऐसे समय में यह भी निवेदन कर रही है कि युवकों के लिए स्थान बनाएं। अधिक से अधिक टिकटें उत्साही, निःस्वार्थी, योग्य युवकों को दें ताकि जोश और होश बढे़। तभी लोकतन्त्र का विकास तेज गति से होगा। लोकतन्त्र की गुणवत्ता बढे़गी। संसद और विधानसभाओं को बूढ़ें लोगों से भरना ठीक नहीं हैं। वृद्ध व्यक्ति अपने अनुभव को युवक कार्यकर्ताओं से, पदाधिकारियों से बिना पद पर रहते हुए भी सलाह के माध्यम से शेयर कर सकते हैं। बूढ़ें / वृद्ध लोगों को राजनीति में रखने के लिए अनुभव का बहाना ठीक नहीं हैं। अगर ऐसा नहीं किया गया तो भविष्य में ऑल यूथ पार्टियां बन जायेगी।
सभी पार्टियां महिला सशक्तिकरण की बात करती हैं। 33 प्रतिशत रिजर्वेशन देने के लिए वर्षों से सभी पार्टियां टालमटोल कर रही है। भारत में अब महिलाएं ज्यादा पढ़ी-लिखी है। ज्यादा योग्य है लड़कों से। किसी भी परीक्षा के रिजल्ट देखें। ऐसे में कानूनी 33 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं को मिलें या न मिले प्रत्येक पार्टी को चाहिए कि 33 प्रतिशत टिकटें महिलाओं को दें। इससे सजग परिवर्तन आयेगा। मतदाता संगठन की सोच के अनुसार अब तो ऑल वुमन राजनैतिक पार्टियों का गठन होना शुरु हो गया है। आने वाले कुछ वर्षों में ऐसी राजनैतिक पार्टियां सशक्त बन जायेगी। इसलिए राजनैतिक पार्टियों को चाहिए कि महिलाओं का अधिक से अधिक या हो सके तो 33 प्रतिशत टिकटें दें।
प्रायः प्रत्येक प्रत्याशी और प्रत्येक पार्टी चुनाव में धनबल, बाहुबल का दुरुपयोग करती है। इन से सम्बन्धित बातों को मीडिया उजागर करें। धनबल, बाहुबल पर अंकुश लगाने के लिए लोगों की राय, प्रबुद्ध लोगों की बात, चुनाव आयोग का दायित्व इत्यादि विषयों पर जन संवाद और विचार एवं मंथन पर मीडिया बहुत कुछ कर सकता है। जब आपराधिक प्रवृतियों वाले प्रत्याशियों को नकारा जायेगा और धनबल, बाहुबल के प्रभाव को हटा सकेगें तभी लोकतन्त्र की गुणवत्ता बढे़गी। तभी देश में सही सुशासन आयेगा और तभी लोगों की आशायें-आकांक्षाये पूरी होगी। विकास तेज गति से होगा।
भारत के मतदाताओं को उम्मीद है कि भारत का जिम्मेदार मीडिया इन बातों को आत्मसात करते हुए हर सम्भव प्रयास इस दिशा में करेगा।