स्थानीय लोकतंत्र का इतिहास

दिल्ली में विधानसभा के 25 साल का आयोजन किया गया मगर सभी दलों की भागीदारी नहीं होने से यह व्यापक नहीं दिखा। इसके कारण पर विचार करना अब प्रासंगिक नहीं होगा। दरअसल यह उत्सव दिल्ली में वर्तमान विधानसभा की रजत जयंती का अवसर रहा । इसलिये 1952 से 1956 तक कायम रही वर्ग ग राज्य दिल्ली की निर्वाचित विधानसभा का  उल्लेख  नहीं किया गया। इसमें कांग्रेस के चौधरी ब्रहम प्रकाश और गुरमुख निहाल सिंह सीएम रहे थे। 1956 से लेकर 1967 तक नगर निगम को छोड़ कर  केन्द्र शासित दिल्ली में राज्य स्तर पर कोई निर्वाचित सदन नहीं था। इतिहास में वे कुछ वर्ष शामिल हैं जब राजधानी में  कथित विधानसभा जैसा सीमित अधिकार वाला सदन था जिसे महानगर परिषद कहा गया। इसमें मनोनीत सदस्य भी हुआ करते थे। 1967 में पहली महानगर परिषद में मनोनीत सदस्य लाल कृष्ण आडवाणी को सदन का अध्यक्ष और बाद में अगली महानगर परिषद में मनोनीत सदस्य राधारमण को मुख्यमंत्री तुल्य मुख्य कार्यकारी पार्षद बनाया गया था।  इसके तहत उप राज्यपाल को सलाह देने के लिये मुख्य कार्यकारी पार्षद-सीईसी के नेतृत्व में 4 कार्यकारी पार्षदों की कथित मंत्रिपरिषद थी। यह व्यवस्था 1967 से 1992 तक चली। इस दौरान राधारमण के अलावा, विजय कुमार मलहोत्रा, केदारनाथ साहनी, जगप्रवेश चंद्र  सीईसी बने। 1966 में अंतरिम महानगर परिषद का गठन किया गया जिसमें मीर मुश्ताक अहमद सीईसी थे। इससे पहले दिल्ली में आजादी से पहले 1916 में नगर पालिका का गठन किया गया जिसके आधे मनोनीत और आधे निर्वाचित सदस्य हुआ करते थे। आजादी के बाद बड़ी संख्या में विस्थापितों के आने और लगातार आबादी बढ़ने के बाद 1958 में दिल्ली नगर निगम का गठन किया गया। इसमें भी मनोनीत सदस्य होते हैं जिन्हें एल्डरमैन कहा जाता है मगर ये सदस्य मेयर आदि प्रमुख पदों पर निर्वाचित नहीं किये जाते।  अब 2012 से दिल्ली में एक के स्थान पर तीन नगर निगम हैं। सबसे पहले नगर निगम में 1958 में लगभग वैसा ही बेमेल गठजोड़ बना था जैसा एक साल पहले तक चली सरकार गठन के लिये जम्मू कश्मीर में पीडीपी और  बीजेपी के बीच  था। निगम के पहले चुनाव के बाद कम्युनिस्ट पार्टी की अरुणा आसफ अली मेयर बनी और जनसंघ के केदारनाथ साहनी उप महापौर बने थे। इस नगर निगम में जनसंघ के विजय कुमार मलहोत्रा सदस्य रहे जो बाद में महानगर परिषद, विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा के भी सदस्य रहे हैं । 1993 में दिल्ली को एनसीआर दिल्ली सरकार का दर्जा मिला। यह न तो राज्य है न ही यूटी लेकिन यह बीच का दर्जा है। ऐसी व्यवस्था  में 1998 तक भाजपा के खुराना जी, साहिब सिंह जी और सुषमा स्वराज सीएम रहीं। 1998 से 2013 तक कांग्रेस की शीला दीक्षित ने एकछत्र राज किया। इसके बाद आमआदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल 2014 के 49 दिन और इसके बाद 14 फरवरी 2015 से दिल्ली की कमान संभाले हुये हैं। उन्होंने आयोजन में पूर्ण राज्य का मुद्दा दुहराया, अगर वे इसे हासिल करेंगे तो उन्हें दिल्ली की सबसे बड़ी हस्ती समझा जायेगा । वे अगर 2020 में फिर सीएम बने तो वह भी लंबे समय तक सीएम पद पर रहने वालों की सूची में स्थान बना सकेंगे।


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