इन्हें परों से नहीं हौसलों से उड़ना सिखाएं

1992 से संयुक्त राष्ट्र द्वारा दिव्यांगो के जीवन को बेहतर बनाने एवं उनमे जागरूकता लाने के उद्देश्य से पूरी दुनिया में 3 दिसंबर को विकलांग दिवस मनाया जा रहा है । दिव्यांग ऐसा कोई व्यक्ति जो किसी निशक्तता से कम से कम 40 प्रतिशत या उससे अधिक ग्रस्त हो। विश्व की कुल जनसंख्या का 15 प्रतिशत दिव्यांग की श्रेणी में आता है । जाहिर सी बात है जिनके शरीर का कोई भाग 40 प्रतिशत से अधिक अक्षम हो ऐसे विश्व के सबसे बड़े अल्पसंख्यक वर्ग को उचित संसाधनों और अधिकारों की कमि के कारण जीवन के कई पहलुओ में ढेर सारी बाधाओं का सामना करना पड़ता है । यदि हम आंकड़ो पर नज़र डाले तो रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इंडिया की और से जारी रिपोर्ट के अनुसार देश में दिव्यांगो की संख्या 2 करोड़ 68 लाख है जो भारत की कुल जनसंख्या का 2 प्रतिशत है । भारत की कुल दिव्यांग जनसंख्या में से 75 प्रतिशत दिव्यांग ग्रामीण क्षेत्रो में, 49 प्रतिशत साक्षर और मात्र 34 प्रतिशत दिव्यांग रोजगार प्राप्त है। केवल मध्य प्रदेश में कुल 1131405 दिव्यांग हे जिनमे से 80 प्रतिशत दिव्यांग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे है । ये आंकड़े दर्शाते है कि स्थिति कितनी भयावह है । शिक्षा एवं रोजगार विकलांगता से लड़ने के मुख्य अस्त्र है किन्तु वास्तविकता इससे परे है । एक दिव्यांग के सम्मानीय जीवन हेतु समाज और सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । यह स्थिति और अधिक शोचनीय तब हो जाती है जब दिव्यांग को परिवार वाले भी बोझ समझते है। आज अन्तराष्ट्रीय , राष्ट्रीय,और क्षेत्रीय स्तर पर दिव्यांगो के पुनरुद्धार, रोकथाम,प्रचार और बराबरी के मौको पर जोर देने हेतु योजनाए बनाई जाती है । सरकार ने विभिन्न वेबसाइड के जरिये सुविधा मुहैया कराने का प्रयास किया है किन्तु आज भी एक सर्वे के अनुसार देश की लगभग 95 प्रतिशत वेबसाइड दिव्यांगो की पहुँच के बाहर है।


     आज जब भारत के दिव्यांगजन के आकड़ो की तुलना अन्य देशो से की गई तो पाया कि भारत की कुल जनसंख्या का मात्र 2 प्रतिशत ही दिव्यांग श्रेणी में है जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में कुल आबादी का 19 प्रतिशत, आस्ट्रेलिया की कुल आबादी का 18.5 प्रतिशत, श्रीलंका में कुल आबादी का 7 प्रतिशत, नेपाल में कुल आबादी का 18 प्रतिशत, बँगलादेश में कुल आबादी का 5.7 प्रतिशत, भूटान में कुल आबादी का 3.5 प्रतिशत, और कनाडा में कुल आबादी का 13.7 प्रतिशत जनसंख्या दिव्यांग है। जनसंख्या की द्रष्टि से भारत विश्व में दुसरे स्थान पर है, पूरी दुनिया की कुल आबादी का 17 प्रतिशत भाग भारत में निवास करता है फिर क्या कारण हो सकता है कि यहाँ दुनिया की सबसे कम दिव्यांग जनसंख्या है ? सड़क दुर्घटनाये भी विकलांगता का प्रमुख कारण है इस में भी भारत का विश्व में पहला स्थान है, फिर भी विकलांगता का 2 प्रतिशत हजम होने वाले आंकड़े नहीं है ।


   फिर वास्तविकता क्या है ? क्या सचमुच सरकार के पास वास्तविक आंकड़े नहीं है ? या इस अल्पसंख्यक को सहायता का दिखावा मात्र है, क्योकि शायद यह वर्ग वोट बैंक को भी इतना प्रभावित नहीं करता । क्या कभी सरकार और सामाजिक तंत्र इस वर्ग को कभी इतना मजबूत बना सकेंगे की यह भी अपने हक़ की मांग कर सके और सरकार भी इसके लिये बाध्य हो ? एक कहावत है “जितनी भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी” , जब दिव्यांगो की भागीदारी को ही नज़रअंदाज़ कर दिया जाएगा तो हिस्सेदारी तो निश्चित ही कम होगी । यह निर्विवाद सत्य है कि दिव्यांगो को अच्छी सेहत और सम्मान पाने, तथा जीवन में आगे बढ़ने के लिये ढेर सारी बाधाओं का सामना करना पड़ता है । लेकिन क्या इसके लिये वह व्यक्ति जिम्मेदार है या उसका समाज जिसमे वह रहता है । शिक्षा और रोजगार के अलावा भी उनकी छोटी छोटी समस्याओं पर जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट में चढने, सार्वजनिक स्थानों बगीचे, मंदिर, सिनेमा हाल,शापिंग माल गाडी की पार्किंग स्थल में इन्हें विशेष सुविधा दी जाए ।


  आज आवश्यकता है विकलांगो को लम्बे समय से सरकार समाज और परिवार के कृपा पात्र बने इस वर्ग को  सामान अधिकार, सम्मानपूर्वक व्यवहार एवं जीवन के मुख्य धारा से जोड़ने की ताकि वो भी देश निर्माण में अपना योगदान दे सकें । उन्हें दया से ज्यादा साथ एवं संवेदना की जरुरत है । तो आइये हम भी आज से अपनी प्रभावी भागीदारी के साथ दिव्यांगो को मजबूत हौसले दे कर उड़ने में सक्षम बनायें।   


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