सियासी परिवारों में विरासत की लड़ाई

देश के सियासी परिवार इन दिनों विरासत की लड़ाई को लेकर उलझे हुए हैं एवं परेशान हैं। लालू, मुलायम एवं चौटाला के परिवार में इसको लेकर घमासान की स्थिति है। कहीं भाई भाई लड़ रहे हैं, कहीं चाचा भतीजे लड़ रहे हैं तो कहीं दादा एवं पोते लड़ रहे हैं। इस लड़ाई को लेकर क्रमशः बिहार, उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा महाभारत का मैदान एवं गवाह बन गए हैं। इनके अलावा अन्य राज्यों के क्षेत्रीय दलों की भी यही स्थिति है।


राजनीति को सब लोग अच्छा नहीं मानते और न ही यह सब के लिए उपयुक्त होती है किंतु जब कोई राजनीति में उतर जाता है और उसमें रम जाता है, तब वह अपने परिवार को राजनीति में उतार कर अपनी जड़ें और मजबूत करना चाहता है। तब बाहरी लोग लोकतंत्र की दुहाई देकर और परिवारवाद की बात कर विरोध करते हैं किन्तु सियासी परिवारवादी तरह तरह के उदाहरण देकर इसे सही ठहराते हैं।


ऐसे राजनीतिक घरानों में जब तक एक के हाथ में कमान रहती है तब तक सब कुछ ठीक-ठाक और अच्छा होता है किंतु अगली पीढ़ी के लोग इसमें उतरते हैं और विरासत के लिए लड़ाई होती है तब यही राजनीति बुरी हो जाती है। लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव एवं ओम प्रकाश चौटाला के लिए राजनीति अब बुरी हो गई है।


एक तरपफ राजद संस्थापक लालू प्रसाद यादव चारा घोटाला के चलते जेल में बंद हैं एवं सजा भोग रहे हैं और बीमार हैं तब बाहर उनके पुत्र तेजस्वी एवं तेज प्रताप विरासत की लड़ाई लड़ रहे हैं। लालू की पत्नी राबड़ी देवी एवं पुत्री मीसा भारती भी लालू की छाया से दूर हैं। यह लालू यादव के लिए दुर्दिन नहीं तो और क्या हैं।


अपने जमाने में राष्ट्रीय स्तर के दमदार नेता बन चुके लालू प्रसाद यादव ने कभी यह दिन देखने की कल्पना भी नहीं की होगी। लालू अपनी पहली संतान मीसा भारती की उपेक्षा कर पुत्रा मोह के चलते पुत्रों को राजनीति में उतारने एवं बड़े पुत्र को दरकिनार कर छोटे पुत्र को तवज्जों देने का खमियाजा सामने देख एवं भोग रहे हैं। लालू की राजद पार्टी पुत्रों की आपसी लड़ाई के चलते आज दो भागों में बंटती दिख रही है।


चारा घोटाले की सजा भोग रहे बीमार एवं जेल में बंद लालू की अब कहीं कोई पूछ परख एवं देखभाल करने वाला नहीं है। लालू की लोकप्रियता के दौर में उनके परिवार के आधा दर्जन सदस्य मलाई खाने राजनीति में उतरे जो अब टिमटिमाते एवं डूबते तारों जैसे हो गए हैं। समाजवादी पार्टी के संस्थापक एवं नेता मुलायम सिंह यादव ने उप्र में सत्ता में आने के बाद इसे पूरी तरह परिवारवादी पार्टी बना दिया था। मुलायम एवं सपा की लोकप्रियता के दौर में मुलायम के एक दर्जन रिश्तेदार सदस्य राजनीति में उतर कर मलाई खाने में जुटे रहे। सपा आज सत्ता से बेदखल है। उत्तरप्रदेश से केंद्र तक भाजपा का बोलबाला है। सपा पार्टी अखिलेश यादव संभाल रहे हैं और मुलायम दरकिनार हैं।


मुलायम के भाई शिवपाल यादव अर्थात अखिलेश यादव के चाचा ने समाजवादी पार्टी के समानांतर पार्टी का गठन कर लिया है। उनके साथ मुलायम यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव है। अपर्णा यादव की ख्याति एक समाज सेविका के रूप में है। वह मुलायम के दूसरे बेटे प्रतीक यादव की पत्नी हैं। शिवपाल समाजवादी सेकुलर मोर्चा के अध्यक्ष हैं।अपर्णा यादव नेताजी अर्थात मुलायम सिंह यादव के बाद अपने चाचा जी अर्थात शिवपाल यादव को महत्त्व देती हैं। शिवपाल की ताकत को मुलायम, अखिलेश सभी जानते हैं। वह उन्हें कमजोर नहीं समझते। शिवपाल शुरू से ही दबंग कार्यकर्ताओं के सरपरस्त रहे हैं। अखिलेश यादव की चिंता यह है कि अगर मजबूत कार्यकर्ता चाचा शिवपाल के साथ हो लिए तो चुनाव में मतदाताओं को बूथ तक लाने में सपा पिछड़ जाएगी।


बिहार, उत्तरप्रदेश के बाद अब हरियाणा के चौटाला परिवार में विरासत की लड़ाई की बारी है। इस परिवार में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। लड़ाई तीसरी पीढ़ी तक जा पहुंची है। दादा पोते लड़ रहे हैं, भाई भाई लड़ रहे हैं। इनकी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल के बिखरने की नौबत तक आ गई है। इनमें आमने सामने की लड़ाई पार्टी में वर्चस्व को लेकर हो रही है। 


बात बिहार के लालू प्रसाद यादव परिवार की हो, उत्तरप्रदेश के मुलायम सिंह यादव परिवार की हो या हरियाणा के ओम प्रकाश चौटाला परिवार की हो, तीनों राज्यों में वहां के क्षेत्रीय दल राजद, सपा, इनेलोद के संस्थापक लालू, मुलायम एवं चौटाला को उम्र के चौथे पड़ाव में परिवार में लड़ाई एवं पार्टी में विघटन देखने को मिल रहा है।


खानदानी राजनीति की लड़ाई में हरियाणा के भजनलाल एवं बंसीलाल का परिवार भी उलझा हुआ है। महाराष्ट्र के ठाकरे परिवार में उ(व एवं राज ठाकरे, शरद पवार परिवार में सुप्रिया सुले एवं अजीत पवार आपस में उलझे हुए हैं। तमिलनाडु में करुणानिधि के पुत्रों एवं परिवार में लड़ाई चल रही है। तेलंगाना में टीआरएस नेता के चंद्रशेखर राव के पुत्रा एवं भतीजे लड़ रहे हैं। इस तरह देशव्यापी सब तरपफ खानदानी राजनीति की दुर्गति हो रही है।


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