![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjDbvF5HzAIe8Vcxfv93LeH27Cv68w13X70WXg3x29iNru3dF2LHl_jxt2C0FGRqZoG01NZ_a8FAc5uGmCWM_hGK5VoyWaOMQ5L0e0wgum4vrgeHcUI_t1J0QAIhQodeetCmTxMOGHbkZ45VeHS9IxWdBd_WzkdffDhyphenhyphennNId1wiuEAT6-d91NK1f1TP6c/s320/Yoga%20Day.jpeg)
![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjDbvF5HzAIe8Vcxfv93LeH27Cv68w13X70WXg3x29iNru3dF2LHl_jxt2C0FGRqZoG01NZ_a8FAc5uGmCWM_hGK5VoyWaOMQ5L0e0wgum4vrgeHcUI_t1J0QAIhQodeetCmTxMOGHbkZ45VeHS9IxWdBd_WzkdffDhyphenhyphennNId1wiuEAT6-d91NK1f1TP6c/s320/Yoga%20Day.jpeg)
तीन दशक पहले जगह जगह लगभग हर रोज घूमते फिरते कई बहरूपिये जनता का मनोरंजन करते दिख जाया करते थे मगर जब से बहरूपियों के रूप में नेताओं की तादाद बढ़ रही है बहूरूपिये विलुप्त होते जा रहे हैं। आज लगभग बीस साल से कम आयु के किशोरों को बहरूपिये की और इस शब्द की जानकारी नहीं है। अब तो हर दिन लोग चेहरे बदल बदल कर निकलते हैं ताकि वे लोगों को ठगने का काम कर सकें। हर चुनाव में नेता रूप बदल कर बहरूपिये बन जाते हैं। बिहार में तो एक जातिवादी क्षेत्रीय दल के अध्यक्ष के बड़े बेटे को रूप बदल बदल कर कभी भोले शंकर और कभी बांसुरीवाला बन कर लोगों को लुभाने की आदत बन गयी है। चुनाव में भी तो नेता थोक में बहरूपिया बनते हैं लेकिन अब अक्सर सड़कों और कॉलोनियों में नये नये रूप में बहरूपिये नजर नहीं आते। कहते हैं कि यह एक पुश्तैनी पेशा था और बहरूपिये बाजारों, मेलों, नदियों पर लगी भीड़ में दिखायी देते थे जो बच्चों और बड़ों को हंसाने और उनका मनोरंजन किया करते थे। उन के पास अलग अगल रूप बनाने के लिये परिधान और जरूरी सामान होता था। उन्हें रूप बदलने की ट्रेनिंग परिवार से मिलती थी और उन्हें आकर्षक और वास्तविक रूप में देख कर और रूप के अनुसार व्यवहार करते देख कर लोग उन्हें ईनाम दे देते थे जिससे उनकी रोजी रोटी चलती थी। इन दिनों, इंटरनेट,यू ट्यूब, मोबाइल फोन ही मनोरंजन के लिये पर्याप्त हैं । इसलिये लोग इस ओर देख कर भी ध्यान नहीं देते और न ही आकर्षित होते हैं। इस कारण ये लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गये हैं। इनकी समस्याओं को उजागर करने के लिये दिल्ली में तीन दिन का बहुरूपिया महोत्सव का आयोजन किया गया। यह आकर्षण का केन्द्र बना और लोगों ने बहरुपियों को राम, रावण, कृष्ण, दुर्गा, नारद, भिखारी, तीसरे सैक्स, मदारी, बंदर, रीछ, लंगूर, बाजीगर, डांसर, कहार, लोहार, डाकू और न जाने कितने ही रूप में देखा मगर किसी ने उन्हें बड़ी रकम दे कर उन पर कृपा नहीं की। आज जो विलुप्त हो रहा है उसकी चिंता लोगों को तो नहीं है मगर सरकार भी ऐसे सामाजिक मुद्दों पर से आंख मूंद लेती है।