जंक फ़ूड के खतरे

जंक या फास्ट फूड सारी दुनिया के साथ हमारे देश में भी लोगों के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा बन गया है। हालात इतने बुरे हो चुके हैं कि नई पीढ़ी का भविष्य बीमार व कमजोर हो रहा है। यही कारण है कि यूजीसी को स्थिति का अध्ययन कर महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में जंक फूड पर प्रतिबंध लगाना पड़ा लेकिन यह अत्यंत दुखद है कि अन्य दिशा-निर्देशों की तरह यूजीसी के जंक फूड संबंधी निर्देशों की भी खुले आम धज्जियां उड़ रही हैं। हमें गंभीरता से उन कारणों को समझना होगा जिनके चलते यूजीसी ने जंक फूड को प्रतिबंधित किया ।


दूसरी ओर मिलावट हमारे बाजार तंत्र का अभिन्न हिस्सा बन गई है। खाद्य पदार्थों में खतरनाक रसायनों की मिलावट की जा रही है। घूस और रिश्वत के सामने ईमानदारी और लोगों के स्वास्थ्य की चिंता घुटने टेक रही है। सब्जियों और फलों को खतरनाक रसायनों से धोकर उनको पकाया व चमकाया जा रहा है। दालों, तेल आदि में मिलावट की खबरें आम हो चुकी हैं। त्योहारी सीजन पर मिलावटी मावा बरामद किए जाने की खबरें आती हैं। देशी घी में मिलावट की खबरें पुरानी पड़ चुकी हैं।


जब मिलावट होती है, खबरें आती हैं तो सामान्य सी खबर सोचकर उस पर कोई खास ध्यान नहीं देता। दूध रोज के इस्तेमाल की वस्तु है लेकिन उसमें तरह-तरह की मिलावट की जाती है। ऐसा नहीं है कि इन सब पर नियंत्राण की हमारे यहां व्यवस्था नहीं है। कागजी कार्यवाही को दुरूस्त रखने की कला हमारे बाबुओं से ज्यादा किसी को नहीं आती। नियामक प्राधिकरण भी हैं लेकिन वहां भी कागज एकदम दुरूस्त मिलते हैं।


बचपन, किशोरावस्था व युवावस्था में व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों की सतत जरूरत होती है जो संतुलित भोजन से ही मिल सकते हैं। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, मिनरल्स, विटामिंस जैसे पोषक तत्व व्यक्ति को अपनी उम्र, अवस्था व गतिविधियों के अनुरूप मिलने चाहिए। शारीरिक, बोधिक व भावनात्मक विकास में इनकी भूमिका को नजरअंदाज करना गंभीर भूल है। हम परिष्कृत और पैक्ड खाने की चीजों का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। आसान उपलब्धता व स्वास्थ्य व पोषण के भ्रामक दावों ने सही चयन को भी भ्रमित कर दिया है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण एमएसएसएआई ने खाद्य तेलों में ट्रांस वसा की मात्रा को वर्ष 2015 में 10 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत तक कर दिया है जिसे वर्ष 2022 तक 2 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य है।


 


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