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दिल्ली की सरकार पिछले कुछ महीने से सक्रिय दिखायी देती है और उसे चुनाव से पहले किये वायदे भी याद आ रहे हैं। समय से पहले जाग जाने में भलाई होती है चाहे यह भलाई सरकारी पार्टी की हो या जनता की। सरकार काम करें तो कुल मिला कर जनता प्रसन्न होती है, यह खुशी काम शुरु करने पर होती है तो काम सिरे चढ़ने पर कुछ ज्यादा होती है। अब सरकार ने राजनीति पर कम और काम पर ज्यादा ध्यान देना शुरु किया है। अहम बात यह भी है कि अगर काम के साथ प्रचार भी जोरदार हो तो काम के नतीजे बेहतर होते हैं और सोने पर सुहागे जैसा महसूस होता है। सच तो यह है कि दिल्ली सरकार इस काम में माहिर है। आखिर जनता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई सरकार किस तरह काम करती है, उसे तो सरकार के काम से फायदा, सुविधा मिलती रहे तो वह उसी में खुश रहती है। कुछ सरकारें इस तथ्य को समझती हैं तो कुछ समझते हुये लापरवाही करती हैं। हम किसी सरकार के काम करने के रवैये पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते मगर किसी नये काम की शुरुआत के बारे में संतुलित टिप्पणी करना तो मीडिया का दायित्व बनता है। दिल्ली सरकार का डोर टू डोर सरकारी सेवायें पहुंचाने का कार्यक्रम अच्छा कदम है। कुछ विभागों की ऐसी सुविधायें जिन्हें प्राप्त करने में लोगों को सरकारी दफ्तरों के बीसियों चक्कर लगाने पड़ते हैं, अंडर टेबल रकम देना या फिर किसी की मुटठी गर्म करना मजबूरी बन जाता है या दलालों के शिकंजे में फंसने की आफत मोल लेनी जरूरी हो जाती है वही अगर घर बैठे केवल 50 रुपये के खर्च पर आपके हाथों में आकर कोई दे जाये तो आप को कैसा महसूस होगा। सिर्फ 50 रुपये के बदले घर बैठे सुविधा, न बस, मेट्रो, थ्री व्हीलर, निजी वाहन का खर्च न लाइनों में लग कर समय की बर्बादी, न भीड़ के धक्के, न परेशानी और सुविधा आपके द्वार। योजना सैद्धांतिक दृष्टि से उत्तम है लेकिन इसे अमल में लाने के लिये सावधानियों का पालन करना होगा ताकि इससे प्रभावित अमला कहीं इसे नाकाम करने पर आमादा न हो जाये। सेवायें आपके हाथ पंहुचाने वाले का पहचान पत्र हो और उनकी पुलिस वेरिफिकेशन अवश्य करायी जाये। इसकी कामयाबी के लिये सरकार और अधिकारियों के बीच तालमेल और संपर्क प्रभावी रहे, यह जरूरी है। आगाज तो अच्छा है, अंजाम खुदा जाने।