नैतिक पतन के लिए जिम्मेदार कौन

परिवर्तन  प्रकृति का नियम है। परिवर्तन होना चाहिए वरना समाज और लोगों में नीरसता आ जाती है। जब । बदलाव की बात आती है तो यह दोनों तरह के होते हैं, अच्छे, तरक्कीयाफ्ता, मन को भाने वाले और खराब भी। खराब और अच्छे की परिभाषा हर आदमी के लिए अलग अलग हो सकती है। यह सुखद सच है कि बदलाव ने जिंदगी को बहुत आसान बना दिया है। तमाम ऐसे सुख हैं जिन्हें न तो शब्दों में बयान किया जा सकता है और न पहले लोगों ने इसकी कल्पना की थी।


इस बदलाव से हर सुख-सुविधा उन लोगों को भी मिलने लगी है जो गरीब-गुरबा और उपेक्षित माने जाते हैं, लेकिन यह मानने में भी कोई संकोच और संदेह नहीं होना चाहिए कि कुछ सामाजिक बदलावों ने लोगों को कई तरह से कमजोर भी किया है, खासकर जीवन मूल्यों और नैतिकता के मामले में। सांप्रदायिक सौहार्द से लेकर पारिवारिक भावनात्मक लगाव तक खत्म हो गए हैं। और हो रहे हैं। 


सांस्कृतिक सभ्यता, संस्कार, नैतिक मूल्यों, आपसी प्यार, भावनात्मक लगाव, लज्जा, छोटे बड़े का सम्मान जिसके लिए भारत जाना जाता था उसका घोर पतन हुआ है। जिधर देखो उधर अनैतिकता, ईष्र्या, नंगापन, रिश्तों की कोई मान्यता नहीं बेशर्मी, लालच, भ्रष्टाचार, स्वार्थ, दुश्मनी, विवाहेत्तर संबंध तथा किसी भी तरह से रुपया हथियाना या कमाना जैसी बातों का बोलबाला है। इसी को आधुनिक सभ्यता और बेहतर जीवन शैली माना जा रहा है। इसे हम पश्चिमी सभ्यता से जोड़कर देखते हैं। इससे मानने लगे हैं कि हम अमरीका जैसे विकसित देशों का मुकाबला कर रहे हैं या उनके मुकाबले में आ गए हैं। 


आखिर नैतिकता का पतन क्यों हो रहा है और अनैतिकता क्यों अपने चरम पर पहुंच रही है। नैतिक मूल्य के हृास के लिए कौन जिम्मेदार है। इन सवालों का जवाब गूढ़ नहीं है। दरअसल जो लोग नैतिक पतन और नंगेपन को लेकर छाती पीट रहे हैं वही लोग इसे बढ़ावा दे रहे हैं। 


ये वे लोग हैं जो दोहरा जीवन जीते हैं। जो युवती निर्वस्त्र होकर फिल्मों में हैं। जो यवती निर्वस्त्र होकर फिल्मों में काम करती है, बेडरूम सीन देती है, अपने नंगे फोटो नेट पर डालती है, हम उसे क्या कहते हैं? पोर्न स्टार। यानी जो युवती बेशर्मी की हदें पार करती है उसे स्टार का दर्जा दिया जाता है। उसे देखने के लिए लाइन और टिकट लगती है। उसे फिल्मों में काम करने के ज्यादा पैसे मिलते हैं। 


आज जो कछ भी हो रहा है उसे कहकर हम टाल देते हैं कि 'अरे, अनैतिक काम करने वालों का सामाजिक बहिष्कार होता था। लोग उस परिवार से बात बात नहीं करते थे। बिरादरी के लोग रिश्ते नहीं करते थे। आज चाहे उसके परिवार में सब चोर लकोर, लंपट, बदमाश हों लेकिन उसके घर में पैसा हो तो लोग उसका बहिष्कार करने की बजाय उसके उसका बहिष्कार करने की बजाय उसक आगे पीछे घूमते हैं। उसके बच्चों का रिश्ता होने में देर नहीं लगती। रिश्ता करने वाले ये वही लोग हैं जो अनैतिकता और नैतिक मूल्यों के हास को लेकर नौ–नौ आंसू बहाते हैं। दिन-रात चिंता में डूबे रहते हैं और इसे लेकर हाय-हाय करते रहते हैं।


कौन किस तरह से पैसे कमा रहाहै, इसे कोई नहीं देख रहा है। कोई युवती ढेर सारे रुपए कहां से कमा कर लाती है, उससे पूछने वाला कोई नहीं है। घर वालों को रुपए मिल गए बस हो गया काम। जिसके पास पैसा है, वही बड़ा आदमी है, वही कृपालु है। वही दयालु है। भ्रष्ट तरीके से जो आदमी करोड़ों रुपए कमा लेता है वह दस बीस हजार दान कर दानी बन जाता है।


कौन किस रिश्ते का सम्मान कर रहा है। जो रिश्ते सबसे ज्यादा से ज्यादा पवित्र माने जाते थे जैसे बाप-बेटी, भाई-बहन, मामा-भांजी, फूफा-साले की लड़की, चाचा, ताऊ, मौसा जैसे रिश्ते आज कलंकित हो चुके हैं। बेटा-बाप को मार रहा है. बेटी मां को। भाई-भाई का खून कर रहा है। ऐसे मामले रोजाना सामने आ रहे हैं जिन पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है। अपराधी खुलेआम शान से घूम रहे हैं।


हम किसी का विरोध क्यों नहीं हम किसी का विरोध क्या नहीं करते क्योंकि हमारे विरोध में दम नहीं । होता। एक विरोध करता है तो स्वार्थवश । दस उसके पक्ष में खड़े हो जाते हैं। कोई । गुंडा-बदमाश आपकी किसी भी तरह की मदद कर दे तो आप उसके गुलाम । हो जाते हैं। उसकी बुराइयां यह कहकर नजरअंदाज कर देते हैं कि भैया हमारे लिए तो वह ठीक है।



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