दिल्ली में गुटबाजी

अक्सर राजनीतिक दल सत्ता में आने और अपनी पकड़ मजबूत करने के लिये आपस में होड़ लगाते हैं और इसे सियासत का अभिन्न अंग कहा जाता है। अगर कोई पार्टी अपने भीतर ही गुटबाजी में पूरी तरह तल्लीन हो कर सियासत में जुट जाये तो ऐसी पार्टी का भविष्य कैसे उज्जवल बन पायेगा। देश की सबसे पुरानी पार्टी की दिल्ली में यही कहानी है। इस पार्टी का 2015 के विधान सभा चुनाव में खाता भी नहीं खुला था मगर इसने 2019 के लोक सभा चुनाव में दिल्ली में सत्तारूढ़ पार्टी को पीछे धकेलते हुये सात संसदीय सीटों में से पांच में दूसरी पोजीशन हासिल कर सबको हैरत में डाल दिया था। इसे देख कर दिल्ली को यह लगने लगा कि 2020 के विधान सभा चुनाव में बड़ी ताकत बन के उभरने का इस पार्टी का मार्ग प्रशस्त हो रहा है। मगर इस पार्टी की अंदरूनी खींचतान और गुटबाजी ने साफ हुये रास्ते पर पत्थर, कंकड़ और कांटे बिछा कर स्पीड ब्रेकर बना दिये हैं। ऐसे में सबसे पुरानी पार्टी की आगे बढ़ने की चाहत कैसे पूरी होगी। लोक सभा चुनाव के बाद जब से इस पार्टी के ऑल इंडिया सदर ने इस्तीफा देने का ऐलान किया  और उन्हें मनाने का अनंत सिलसिला शुरू हुआ तबसे  2019 के चुनाव में बुरी तरह हारी इस पार्टी का बचा खुचा होसला लड़खड़ा गया है। कारण है, कई राज्यों में पार्टी से हो रही भगदड़ और हरियाणा जैसे शीघ्र  संभावित विधान सभा चुनाव वाले राज्य में भी गुटबाजी जोरों पर है। क्या होगा इस पार्टी का। 


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