

भले ही अब शीला जी अदृश्य और मौन हैं मगर उनके द्वारा किये गये अभूतपूर्व कार्यों को दिल्ली लगातार देख और महसूस कर रही है तथा सदियों तक उनकी कार्यशैली पर गर्व करती रहेगी जिसके कारण दिल्ली में अविश्वसनीय कायाकल्प संभव हो सका। शीला जी ने उस समय दिल्ली की कमान संभाली जब राजधानी में बिजली, पानी और परिवहन की व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गयी थी। बिजली की बाधित आपूर्ति के कारण लोग सरकार के खिलाफ विद्रोह के मूड में थे। शीला जी ने संयम और समझबूझ से इन मुद्दों को काफी हद तक हल करके जनता का दिल जीत लिया। बिजली वितऱण के काम का निजीकरण करना एक अहम चुनौती थी। उन्होंने इस काम की सभी बारीकियों को ध्यान में रखते हुये इसे पूरा करवाया। सोनिया विहार जल संयंत्र जनता को समर्पित कर जमना पार्क तथी दक्षिणी दिल्ली के प्यासे इलाकों तक गंगा जल का नियमित प्रवाह सुनिश्चित कर लाखों परिवारों के कष्ट दूर किये। सार्वजनिक परिवहन की दिक्कतें दूर करने और प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिये दिल्ली मेट्रो की ठंडे बस्ते में दबी फाइल निकलवा के इस परियोजना को जमीन पर ला कर हकीकत बनाया, सीएनजी लागू किया, बरसात के एक मौसम में 10 लाख पौधे लगवाये, बसों की तादाद मे बड़ी वृद्धि करवाईं और बस स्टैंड पर लगी लंबी लाइनें काफूर हो गयीँ, लगभग साधारण किराये पर लोगों को एअर कंडीशनड बसों की सुविधा दी। उनेक ईमानदार प्रयासों के कारण कभी दिल्ली को सिटी ऑफ फ्लाईओवर्स, सिटी ऑफ गार्डनस, द ग्रीनेस्ट केपिटल सिटी इन द वर्ल्ड, सिटी ऑफ बैस्ट मेडिकल टूरिज्म, कल्चरल केपिटल ऑफ इंडिया, सिटी ऑफ न्यू यूनिवर्सिटीज, देश में सबसे पहले लाडली योजना लागू करने और सबसे पहले आऱटीआई कानून बनाने की दिल्ली की उपलब्धि, सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आय का शहर, पहला केरोसिन मुक्त शहर और कई ख्याति मिलने लगीं। उन्होंने महिलाओं, कामगारों, गरीबों और युवकों के लिये कल्याण योजनायें लागू कीं और कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन की बाधायें दूर कीं और इसके लिये ढांचागत विकास किया। कार्य और उपलब्धियों की गिनती असंभव है। उनका काम बोलता है, नाम बोलता है, शानदार विकास में उनकी मुस्कान महसूस की जा सकती है। वह दिल्ली के जनमानस में सजीव हैं, सदैव जीवित रहेंगी क्योंकि उनके दिल में दिल्ली ही बसी थी।